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________________ गाहा-सत्तसई ५७५ गाहासत्तसई के पढ़ने के बाद यह जानकर बड़ा कौतूहल होता है कि क्या ईसवी सन की प्रथम शताब्दी के आसपास प्राकृत में इतने भावपूर्ण उत्कृष्ट काव्यों की रचना होने लगी थी ? गाथासप्तशती के अनुकरण पर संस्कृत में आर्यासप्तशती और हिन्दी में बिहारीसतसई' आदि की रचनायें की गई हैं। अमरु कवि का अमरुशतक भी इस रचना से प्रभावित है। हाल अथवा आंध्रवंश के सातवाहन (शालिवाहन) को इस कृति का संग्रहको माना जाता है । सातवाहन और कालकाचार्य के संबंध में पहले कहा जा चुका है । सातवाहन प्रतिष्ठान में राज्य करते थे,तथा बृहत्कथाकार गुणाव्य और व्याकरणाचार्य शर्ववर्मा आदि विद्वानों के आश्रयदाता थे। भोज के सरस्वतीकंठाभरण (२. १५) के अनुसार जैसे विक्रमादित्य ने संस्कृत भाषा के प्रचार के लिये प्रयत्न किया, उसीप्रकार शालिवाहन ने प्राकृत के लिये किया । राजशेखर काव्यमीमांसा (पृ० ५०) के अनुसार अपने अंतःपुर में शालिवाहन प्राकृत में ही बातचीत किया करते थे (श्रूयते चकुंतलेषु सातवाहनो नाम राजा, तेन प्राकृतभाषास्मकमन्तःपुर एवेति समानं पूर्वेण)| बाण ने अपने हर्षचरित में सातवाहन को प्राकृत के सुभाषित रत्नों का संकलनकर्ता कहा है। इनका समय इंसवी सन् ६६ माना जाता है। श्रृंगाररस प्रधान होने के कारण इस कृति में नायक-नायिकाओं के वर्णनप्रसंग में साध्वी, कुलटा, पतिव्रता, वेश्या, स्वकीया, परकीया, संयमशीला, चंचला आदि स्त्रियों की मनःस्थितियों का सरस चित्रण किया है। प्रेम की अवस्थाओं का वर्णन अत्यंत मार्मिक १. तुलना के लिये देखिये श्री मथुरानाथ शास्त्री की गाथासप्तशती की भूमिका, पृ. ३७-५३; पद्मसिंह शर्मा का बिहारीसतसई पर संजीवनी भाप्य । डिंगल के कवि सूर्यमल्ल ने वीरसतसई की रचना की । इसी प्रकार गुजराती में दयाराम ने सतसया और दलपतराय ने दलपतसतसई की रचना की-प्रोफेसर कापडिया, प्राकृत भाषाओ अने साहित्य, पृष्ठ १४५ फुटनोट ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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