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________________ अन्य चरित-ग्रंथ रचना में पाई जाती हैं । इस समय सुप्रसिद्ध हेमचन्द्र आचार्य के गुरु देवचन्द्र सूरि ने लगभग १२,००० श्लोकप्रमाण संतिनाहचरिय की रचना की । फिर नेमिचन्द्रसूरि के शिष्य शांतिसूरि ने अपने शिष्य मुनिचन्द्र के अनुरोध पर सन् ११०४ में पुह्वीचन्दचरिय लिखा । मलधारी हेमचन्द्र ने नेमिनाहचरिय, और उनके शिष्य श्रीचन्द्र ने सन् ११३५ में मुणिसुव्वयसामिचरिय की रचना की। देवेन्द्रसूरि के शिष्य श्रीचन्द्रसूरि ने सन् ११५७ में सणंकुमारचरिय की रचना की। श्रीचन्द्रसूरि के शिष्य वाटगच्छीय हरिभद्र ने सिद्धराज और कुमारपाल के महामात्य पृथ्वीपाल के अनुरोध पर चौबीस तीर्थकरों का जीवनचरित लिखा। इनमें चन्दप्पहचरिय, मल्लिनाहचरिय और नेमिनाहचरिय 'उपलब्ध हैं। मल्लिनाहचरिय प्राकृत में लिखा गया है, इसमें तीन प्रस्ताव हैं। कुमारपालप्रतिबोध के कर्ता सोमप्रभसूरि ने ६००० गाथाओं में सुमतिनाहचरिय, और सन् १३५३ में मुनिभद्र ने संतिनाहचरिय की रचना की। नेमिचन्द्रसूरि ने भव्यजनों के लाभार्थ अनन्तनाहचरिय लिखा जिसमें पूजाष्टक' उद्धृत किया है। यहाँ कुसुमपूजा आदि के उदाहरण देते हुए जिनपूजा को पापहरण करनेवाली, कल्याण का भंडार और दरिद्रता को दूर करनेवाली बताया है। दारिद्रय के संबंध में उक्ति है हे दारिद्रय ! नमस्तुभ्यं सिद्धोऽहं त्वत्प्रमादनः । जगत्पश्यामि येनाहं न मां पश्यनि कञ्चन ।। -हे दारिद्रय ! तुझे नमस्कार हो । तेरी पा से मैं सिद्ध बन गया हूं, जिससे मैं जगत को देखता हूं और मुझे कोई नहीं देखता। १. ऋपभदेव केशरीमल श्वेतांबर जैन संस्था की और में मन् १९३९ में रतलाम में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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