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________________ ५६८ प्राकृत साहित्य का इतिहास कृष्ण की मृत्यु, वलदेव का विलाप, दीक्षा ग्रहण, पाण्डवों की दीक्षा और नेमिनाथ के निर्वाण का वर्णन है। कृष्ण मर कर तीसरे नरक में गये, आगे चलकर वे अमम नाम के तीर्थकर होंगे। बलदेव उनके तीर्थ में सिद्धि प्राप्त करेंगे। कुम्मापुत्तचरिय ( कूर्मापुत्रचरित) कूर्मापुत्रचरित में कूर्मापुत्र की कथा है, जो १९८ प्राकृत पद्यों में लिखी गई है।' इस ग्रन्थ के कर्ता जिनमाणिक्य अथवा उनके शिष्य अनन्तहंस माने जाते हैं। ग्रन्थ की रचना का समय सन् १५१३ है । सम्भवतः इसकी रचना उत्तर गुजरात में हुई है | कुम्मापुत्तचरिय की भाषा सरल है, अलंकार आदि का प्रयोग यहाँ नहीं है । व्याकरण के नियमों का ध्यान रक्खा गया है। कुम्मापुत्त की कथा में भावशुद्धि का वर्णन है । दान, शील, रूप आदि की महिमा बताई गई है । अन्त में गृहस्थावस्था में रहते हुए भी कुम्मापुत्त को केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। प्रसंगवश मनुष्यजन्म की दुर्लभता, अहिंसा की मुख्यता, कमों का क्षय, प्रमाद का त्याग आदि विषयों का यहाँप्ररूपण किया गया है। अन्य चरित-ग्रन्थ इसके अतिरिक्तअभयदेवसूरि के शिष्य चन्द्रप्रभमहत्तर ने संवत् ११७ (सन् १०७० ) में देवावड नगर में वरदेव के अनुरोध पर विजय चन्दकेवलीचरिय की रचना की। इसमें धूपपूजा, अक्षतपूजा, पुष्पपूजा, द्वीपपूजा, नैवेद्यपूजा आदि के उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। अभयदेवसूरि के शिष्य वर्धमानसूरि ने सन् १८८३ में १५,००० गाथाप्रमाण मनोरमाचरिय और ११,००० श्लोकप्रमाण आदिनाहचरिय की रचना की। अपभ्रंश की गाथायें भी इस १. प्रो० अभ्यंकर द्वारा सम्पादित सन् १९३३ में अहमदाबाद से प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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