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________________ ५२६ प्राकृत साहित्य का इतिहास चरित लिखा ।' स्वतंत्ररूप से भी अनेक चरितों की रचना हुई। उदाहरण के लिये, वर्धमानसूरि ने आदिनाथचरित, विजयसिंह के शिष्य सोमप्रभ ने सुमतिनाथचरित, देवसूरि ने पद्मप्रभस्वामीचरित, यशोदेव ने चन्द्रप्रभस्वामीचरित,अजितसिंह ने श्रेयांसनाथचरित, चन्द्रप्रभ ने वासुपूज्यस्वामिचरित, नेमिचन्द्र ने अनंतनाथचरित, देवचन्द्र ने शांतिनाथचरित, जिनेश्वर ने मल्लिनाथचरित, श्रीचन्द्र ने मुनिसुव्रतस्वामिचरित, रत्नप्रभ ने नेमिनाथचरित आदि चरितों की रचना की। इसी प्रकार अतिमुक्तकचरित, ऋषिदत्ताचरित, देवकीचरित, रोहिणीचरित, दमयंतीचरित, मनोरमाचरित, मलयसुन्दरीचरित, पद्मावतीचरित, सीताचरित, हरिबलचरित, वज्रचरित, नागदत्तचरित, भरतचरित आदि कितने ही चरित लिखे गये जो अभी तक अप्रकाशित पड़े हैं। जैनधर्म के उन्नायक महान् आचार्यों के चरित भी जैन आचार्यों ने लिखे । उदाहरण के लिये, जिनदत्त और चारित्रसिंह गणि ने" गणधरसार्धशतक की रचना की। इसमें आर्यसमुद्र, मंगु, वज्रस्वामी, भद्रगुप्त, तोसलिपुत्र, आर्यरक्षित, उमास्वाति, हरिभद्रशीलांक, नेमिचन्द्र, उद्योतनसूरि, जिनचन्द्र, अभयदेव आदि आचार्यों के चरित लिखे गये । आगे चलकर जिनसेन, १. मुनि पुण्यविजय जी इसे प्रकाशित कर रहे हैं। इसके मुद्रित फर्मे ( १-३३५) उनकी कृपा से मुझे देखने को मिले । क्लौस बहन (Klaus Bruhn ) द्वारा संपादित, हैम्बर्ग से १९५४ में प्रकाशित । २. विशेष के लिये देखिये जैन ग्रंथावलि, श्रीश्वेतांबर जैन कान्फरेन्स, बंबई, वि० स० ११६५, पृष्ठ २३८-२४५ । आदिनाथ, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर के चरित सिरिपयरणसंदोह (ऋषभदेव केशरीमल संस्था, रतलाम, सन् १९२९) में प्रकाशित हुए हैं। ३. इसे मुनि जिनविजयजी प्रकाशित कर रहे हैं। ४. जैन ग्रंथावलि, पृष्ठ २२०-२३७ । ५. चुन्नीलाल पन्नालाल द्वारा बंबई से सन् १९१६ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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