SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 494
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रत्नशेखरीकथा ४८३ चरित्र आदि की भी रचना की है। ये संस्कृत और प्राकृत के बड़े पंडित और अनुभवी विद्वान जान पड़ते हैं। उन्होंने बड़ी सरस और प्रौढ़ शैली में इस कथा की रचना की है । रनशेखरीकथा में पर्व और तिथियों का माहात्म्य बताया है। गौतम गणधर भगवान महावीर से पों के फल के संबंध में प्रश्न करते हैं और उसके उत्तर में महावीर राजा रत्नशेखर और रत्नवती की कथा सुनाते हैं। रनशेखर रनपुर का रहनेवाला था, उसके महामंत्री का नाम था मतिसागर | रत्नशेखर राजकुमारी रत्नवती के रूप की प्रशंसा सुनकर व्याकुल हो उठता है। मतिसागर जोगिनी का रूप धारण कर सिंहलद्वीप' की राजकुमारी रत्नवती से मिलने जाता है । कुशलवार्ता के पश्चात् राजकुमारी जोगिनी से उसके निवास स्थान के संबंध में प्रश्न करती है। जोगिनी उत्तर देती है कायापाटणि हंस राजा फरइ पवनतलार | तीणइ पाटणि वसइ जोगी जाणइ जोगविचार ।। एकई मढली पांचजणाहो छट्ठहो वसइ चण्डालो । नीकालता न निकलइ रे तीण किओ विटालो। -कायारूपी नगरी में हंसरूपी राजा रहता है, वहाँ पवनरूपी नगर-रक्षक प्रकट होता है। उस नगरी में जोगी बसता है, वह जोग का विचार करना जानता है। एक मंडली में पाँच आदमी हैं, छठा चाण्डाल रहता है। उसे निकालने से भी वह नहीं निकलता, उसने सब कुछ बिगाड़ दिया है। योग-विचार के संबंध में प्रश्न करने पर जोगिनी ने 'वज्रांगयोनिगुदमध्य' को प्रभिन्न करने पर मोक्ष की प्राप्ति बताई। तत्पश्चात् रत्नवती ने अपने घर की प्राप्ति के संबंध में - १. डॉक्टर गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने इसकी पहचान चित्तौड़ से करीब ४० मील पूर्व में सिंगोली नामक स्थान से की है। ओझा निबन्ध-संग्रह, द्वितीय भाग, पृ० २८१ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy