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________________ ४८४ प्राकृत साहित्य का इतिहास जोगिनी से पूछा । उसने उत्तर दिया कि जो कोई कामदेव के मंदिर में द्यूतक्रीड़ा करता हुआ वहाँ पर तुम्हारे प्रवेश को रोकेगा, वही तुम्हारा वर होगा। मतिसागर मंत्री ने लौटकर सब समाचार राजा रत्नशेखर को सुनाया। राजा अत्यंत प्रसन्न हुआ। राजा ने अपने मंत्री के साथ सिंहलद्वीप की ओर प्रयाण किया और वहाँ कामदेव के मंदिर में पहुँचकर वह अपने मंत्री के साथ द्यूतक्रीडा करने लगा। रत्नवती भी अपनी सखियों को लेकर वहाँ कामदेव की पूजा करने आई। मंदिर में कुछ पुरुषों को देखकर रत्नवती की सखी ने उन लोगों से कहा कि हमारी स्वामिनी राजकुमारी किसी पुरुष का मुँह नहीं देखती, वह यहाँ कामदेव की पूजा करने आई है, इसलिये आप लोग मंदिर से बाहर चले जायें। मंत्री ने उत्तर दिया कि हमारा राजा रत्नशेखर बहुत दूर से आया है, अपने परिवार के साथ मिलकर वह द्यूतक्रीडा कर रहा है, वह किसी नारी का मुँह नहीं देखता, इसलिये तुम अपनी स्वामिनी को कहो कि अभी मंदिर में प्रवेश न करे| सखी ने राजा के रूप की प्रशंसा करते हुए राजकुमारी से जाकर कहा कि कोई अपूर्व रूपधारी राजा मंदिर में बैठा हुआ द्यूतक्रीडा कर रहा है। राजकुमारी को तुरत ही जोगिनी के वचनों का स्मरण हो आया । हर्ष से पुलकित होकर उसने मंदिर में प्रवेश किया। इतने में राजकुमारी को देखकर राजा ने वस्त्र से अपना मुँह ढंक लिया । रत्नवती ने मुँह ढंकने का कारण पूछा तो मंत्री ने उत्तर दिया कि हमारे राजा नारियों का मुँह नहीं देखते । रत्नवती ने प्रश्न किया कि नारियों ने ऐसा कौन सा पाप किया है। मंत्री ने उत्तर दियाकेता कहुउं नारितणा विचार कुडां करई कोडिगमे अपार | बोलई सविहुर्नु विरूउँ तिनीटु जाणइं नही बोरतणउं जे बीट ।।१॥ कथा न पोथे न पुराणि कीधी जे बात देवातनि न प्रसिद्धी । किमइ न सुझइं किहिरहिं जि बोल नारी पिसाची ति भणइ निटोल।।२॥ कुडातणी कोडि करई करावई नारी सदा साचपुणुं जणावई ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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