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________________ ૨૮૨ प्राकृत साहित्य का इतिहास बड़ी चिन्ता हुई और बत्तीस लक्षणों से युक्त किसी परदेशी की बलि देने का निश्चय किया गया। बब्बरदेश में पहुँचकर वहाँ के अधिपति से श्रीपाल का युद्ध होता है, और अन्त में बब्बर राजकुमारी मदनसेना के साथ श्रीपाल का विवाह हो जाता है। आगे चलकर विद्याधरी कन्या मदनमंजूषा से उसका विवाह होता है। सार्थवाह धवलसेठ श्रीपाल की हत्या कर उसकी पत्नियों को हथियाना चाहता है। श्रीपाल को वह समुद्र में गिरा देता है। श्रीपाल किसी मगर की पीठ पर बैठकर कोंकण के तट पर ठाणा (आजकल भी इसी नाम से प्रसिद्ध) नाम के नगर में पहुँचता है। यहाँ क्षेत्रपाल, मणिभद्र, पूर्णभद्र, कपिल और पिंगल, प्रतिहारदेव और चक्रेश्वरी देवी का उल्लेख है जो धवलसेठ को मारने के लिये उद्यत हो जाते हैं। और भी कन्याओं से श्रीपाल का विवाह होता है। मरहट्ट, सोरठ, लाड, मेवाड़ आदि होता हुआ वह अपनी आठों पत्नियों के साथ मालवा पहुँचता है। उज्जैनी में वह अपनी माता के दर्शन करता है। मदनसुन्दरी को वह पट्टरानी बनाता है और धवलश्रेष्ठी के पुत्र विमल को कनकपट्टपूर्वक श्रेष्ठी पद पर स्थापित करता है। सिद्धचक्र की वह पूजा करता है और अमारि की घोषणा करता है। इस प्रकार राजा श्रीपाल अपने राज्य का संचालन करता हुआ अपने कुटुंब परिवार के साथ धर्मध्यानपूर्वक समय बिताता है। रयणसेहरीकहा ( रत्नशेखरीकथा) जयचन्द्रसूरि के शिष्य जिनहर्षगणि प्राकृत गद्य-पद्यमय इस प्राकृत ग्रंथ के लेखक हैं जो पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त में हुए हैं ।' इस प्रन्थ की रचना चित्तौड़ में हुई है। जिनहर्षगणि ने वसुपालचरित्र, सम्यक्त्वकौमुदी तथा विंशतिस्थानक १. आत्मानंद जैन ग्रन्थमाला में वि० सं० १९७४ में निर्णयसागर बंबई से प्रकाशित।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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