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________________ श्रीपालकथा -जो सब कलाओं में कुशल हो, तरुण हो और रूप-लावण्य से संपन्न हो, वही श्रेष्ठ वर है, नहीं तो फिर जैसा आप उचित समझे। मदनसुंदरी ने उत्तर दियाजेण कुलबालियाओ न कहंति हवेड एस मज्झ वरो। 'जो किर पिऊहिं दिनो, सो चेव पमाणियव्वुत्ति ।। -कुलीन बालिकायें अपने वर के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहतीं । जो वर माता-पिता उनके लिये खोज देते हैं, वही उन्हें मान्य होता है। तत्पश्चात् मदनसुन्दरी ने कहा-पिता जी, अपने कर्मों से सब कुछ होता है, पुण्यशील कन्या को खोटे कुल में देने से भी वह सुखी होती है, और पुण्यहीन कन्या को अच्छे कुल में देने से भी वह दुख भोगती है। राजा को यह सुनकर बहुत क्रोध आया। उसने सोचा कि यह लड़की तो मेरा कुछ भी उपकार नहीं मानती, अपने कर्म को ही मुख्य बताती है। राजा ने गुस्से में आकर एक कोढ़ी से मदनसुंदरी का विवाह कर दिया। मदनसुन्दरी ने उस कोढ़ी को अपना पति स्वीकार किया और वह उसकी सेवा-शुश्रूषा करती हुई समय यापन करने लगी। कालांतर में सिद्धचक्र के माहात्म्य से कोढ़ी का कोढ़ नष्ट हो गया और दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे। यही कोढ़ी इस कथा का नायक श्रीपाल है। श्रीपाल को अनेक मंत्र-तंत्र, रसायनों और जड़ी-बूटियों की प्राप्ति हुई। समुद्रयात्रा के प्रसंग पर वडसफर, पवहण, बेडिय (बेड़ा), वेगड, सिल्ल (सित =पाल ), आवत्त (गोल नाव), खुरप्प और बोहित्थ' नाम के जलयानों का उल्लेख है। जब जलयान चलाने पर भी नहीं चले तो वणिक् लोगों को १. अंगविज्जा के ३३वें अध्याय में भी जलयानों का उल्लेख मिलता है। ३१ प्रा० सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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