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________________ कुमारपालप्रतिबोध सिर पर रखकर बाजार में बेचे जाने का उल्लेख है।' तारा अपने पुत्र के साथ घर छोड़कर चली जाती है। अपने शील को सुरक्षित रखने के लिये उसे अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं । एक सुभापित देखिये सीहह केसर सइहि उरु सरणागओ सुहडस्स | मणि मत्थइ आसीविसह किं धिप्पइ अमुयस्स ॥ -सिंह की जटाओं, सती स्त्री की जंघाओं, शरण में आये हुए सुभट और आशीविष सर्प के मस्तक की मणि को कभी नहीं स्पर्श करना चाहिए। ___ जयसुंदरी की कथा में जोगियों का निर्देश है। उन्हें खाद्यअखाद्य, कार्य-अकार्य और गम्य-अगम्य का विवेक नहीं होता। एक जोगी दूसरे जोगी को मद्य-पान कराके उसकी स्त्री को भगाकर ले जाता है। जयसुंदरी नगर के श्रेष्ठी, मंत्री, पुरोहित और राजा की चरित्र-भ्रष्टता देखकर निराश होती है। वह इन १. दूसरे देशों पर धाड़ी मारकर राणा प्रतापसिंह द्वारा लाई हुई गौरवर्ण, सोलह वर्ष की पनुती नाम की दासी के बेचे जाने का उल्लेख एक दासीविक्रयपत्र में मिला है। इस दासी के सिर पर तृण रक्खे हुए थे और इसे खोटने, कूटने, लीपने, बुहारने, पानी भरने, मल-मूत्र साफ करने, गाय-भैंस दुहने, और दही बिलोने आदि के काम के लिए ५०० द्रम्म में खरीदा गया था। देखिये ऐंशियेण्ट विज्ञप्तिपत्रक, डॉ. हीरानन्द द्वारा १९४२ में बड़ौदा से प्रकाशित । इस पत्र की नकल डॉ. हीरालाल जैन के पास से मुझे मिली है। २. मिलाइये : किवणाणं धणं णाआणं फणामणी केसराई सीहाणं । कुलवालिआणं थणआ कुत्तो छिप्पंति अमुआणं॥ काव्यप्रकाश, १०, ४५७ तथा केहरकेस भुजंगमण सरणाई सुहडाह । सती पयोहर क्रपणघन, पडसी हाथ मुवाह । कन्हैयालाल सहल, राजस्थानी कहावतें, पृ० २९६ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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