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________________ ४७० प्राकृत साहित्य का इतिहास चारों को एक सन्दूक में बन्द कर पंचों के पास ले जाती है। तत्पश्चात् रुक्मिणी, प्रद्युम्न-शंब, धर्मयश-धर्मघोष विष्णुकुमार, प्रसन्नचन्द्र, शाल-महाशाल, इलापुत्र तथा जयवर्म-विजयवर्म की कथायें हैं। चौथे प्रस्ताव में अहिंसा, सत्य आदि बारह व्रतों की बारह कथायें लिखी गई हैं। मकरध्वज, पुरंदर और जयद्रथ की कथायें संस्कृत में हैं । जयद्रथकथा में कुष्माण्डी देवी का उल्लेख है। ___ पाँचवाँ प्रस्ताव अपभ्रंश में है। इसका अध्ययन डॉक्टर एल्सडोर्फ ने किया है जो हैम्बर्ग से सन् १९२८ में प्रकाशित हुआ है। जीवमनःकरणसंलापकथा धार्मिक कथाबद्ध रूपक काव्य है जिसमें जीव, मन और इन्द्रियों में वार्तालाप होता है । देह नामक नगरी लावण्य-लक्ष्मी का निवास स्थान है। नगरी के चारों ओर आयुकर्म का प्राकार है, जिसमें सुख, दुख, क्षुधा, तृषा, हर्षे, शोक आदि अनेक प्रकार की नालियाँ अनेक मार्ग हैं। इस नगरी में आत्मा नामका राजा अपनी बुद्धि नामकी महादेवी के साथ राज्य करता है। मन उसका प्रधान मंत्री है, पाँच इन्द्रियाँ पाँच प्रधान पुरुष हैं। आत्मा, मन और इन्द्रियों में वाद-विवाद छिड़ जाने पर मन ने अज्ञान को दुःख का मूल कारण बताया, आत्मा ने मन को दोषी ठहराया और मन ने इन्द्रियों पर दोषारोपण किया। पाँचों इन्द्रियों के कुलशील के संबंध में चर्चा होने पर कहा गया-“हे प्रभु, चित्तवृत्ति नामकी महा अटवी में महामोह नामका राजा अपनी महामूढा देवी के साथ राज्य करता है। उसके दो पुत्र हैं, एक राग-केसरी, दूसरा द्वेष-गजेन्द्र राजा के महामंत्री का नाम मिथ्यादर्शन है। मद, क्रोध, लोभ, मत्सर और कामदेव आदि उसके योद्धा हैं । एक बार महामंत्री ने उपस्थित होकर राजा से निवेदन किया कि महाराज, चारित्रधर्म नामका गुप्तचर संतोष प्रजा को जैनपुर में ले जाता है। यह सुनकर राजा ने अपने मंत्री की सहायता के लिये इन्द्रियों को नियुक्त किया।” इस
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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