SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०६ प्राकृत साहित्य का इतिहास सेटिणा भणियं-'वच्छ, सुयं मए, जहा आगयं जाणवत्तं चीणाओ, ता तं तुमए उवलद्धं न व' ति । तओ सगग्गयक्खरं जंपियं धरणेणं-'अज्ज उवलद्धं' ति | सोगाइरेगेण य पवत्तं बाहसलिलं । तओ 'नूणं विवन्ना से भारिया, अन्नहा कहं ईइसो सोगपसरो' त्ति चिंतिऊण भणियं टोप्पसेट्ठिणा-'वच्छ, अवि तं चेव तं जाणवत्तं ति | धरणेणं भणियं-'आम'। सेट्टिणा भणियं-'अवि कुसलं ते भारियाए? धरणेण भणियं-'अज्ज कुसलं'। सेट्टिणा भणियं-'ता किमन्नं ते उठवेयकारणं ?' धरणेण भणियं-'अन्ज, न किंचि आचिक्खियव्वं' ति | सेटिणा भणियं-'ता किं विमणो सि' ? धरणेण भणियं-'आम' । सेटिणा भणियं-'किमाम'? धरणेण भणियं-'एयं'। सेटिणा भणियं किमयं ?' धरणेण भणियं न किंचि' । सेट्ठिणा भणियं 'वच्छ, किमेएहिं सुन्नभासिएहिं ? आचिक्ख सम्भावं । न य अहं अजोग्गो आचिक्खियव्वस्स, पडिवन्नो य तए गुरू' । तओ 'न जुत्तं गुरू आणाखंडणं' ति चिन्तिऊण जंपियं धरणेण-"अन्ज, 'अज्जस्स आण' त्ति करिय ईइसं पि भासियह" त्ति | सेट्टणा भणियं-'वच्छ, नथि अविसओ गुरुयणाणुवत्तीए ।' धरणेणं भणियं-'अज्ज जइ एवं ता कुसलं मे भारियाए जीविएणं, न उण सीलेणं ।' सेट्ठिणा भणियं-'कहं वियाणसि ?' धरणेण भणियं-'कजाओ ।' सेट्ठिणा भणियं'कहं विय ?' तओ आचिक्खिओ से भोयणाइओ जलनिहितडपज्जवसाणो सयलवुत्तन्तो। -सेठ ने पूछा-"वत्स, सुना है कि चीन से जहाज लौट आया है, तुम्हें मालूम है या नहीं ?” धरण ने अवरुद्ध स्वर में उत्तर दिया-"आर्य, मालूम है ।" यह कह कर शोकातिरेक से उसकी आँखों से अश्रु बहने लगे। टोप्पसेठ ने सोचा कि अवश्य ही इसकी पत्नी मर गई होगी, अन्यथा यह क्यों शोक से व्याकुल होता ? उसने पूछा "वत्स, क्या वह वही जहाज है ?"
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy