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________________ समराइश्चकहा ४०७ ४०७ "तुम्हारी पत्नी कुशल से तो है ?" "हाँ, कुशल है।" "फिर तुम्हारे शोक का क्या कारण ?" "आर्य, कोई खास बात नहीं है।" "फिर उदास क्यों हो?" "हाँ क्या ?" ऐसे ही" "ऐसे ही क्या ?” "कुछ नहीं" ___ "वत्स, इस प्रकार क्या सूनी-सूनी बात कर रहे हो ? ठीक ठीक बोलो, मुझ से छिपाने की आवश्यकता नहीं। तुमने मुझे बड़ा मान लिया है।" "बड़ों की आज्ञा का उल्लंघन करना ठीक नहीं," यह सोचकर धरण ने कहा-"जैसी आपकी आज्ञा', इसलिये ऐसी बात भी कहनी पड़ती है।" "गुरुजनों से कोई बात छिपाने की जरूरत नहीं।" "यदि यह बात है, तो लीजिये मेरी पत्नी जीवित तो है, लेकिन शील से नहीं।" "कैसे जानते हो ?" "उसके कार्य से।" "कैसे ?" तत्पश्चात् आदि से अंत तक सारा वृत्तान्त धरण ने कह सुनाया। यहाँ अन्तर्कथा में शबर वैद्य और अरहदत्त का आख्यान है। शबर वैद्य अरहदत्त को उपदेश देने के लिये अपने साथ लेकर चला। मार्ग में उसने देखा कि किसी गाँव में आग लग गई है। वैद्य घास का गट्ठर लेकर आग बुझाने के लिये
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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