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________________ समराइचकहा ४०५ चाहिये । इस प्रकार गमन करने से शीघ्र ही जंगल को लांघ कर निर्वृतिपुर (मोक्ष) में पहुँचा जा सकता है । यहाँ किसी प्रकार का कोई क्लेश और उपद्रव नहीं है। छठे भव में गुणसेन और अग्निशर्मा धरण और लक्ष्मी का जन्म धारण कर पति-पत्नी बनते हैं। लक्ष्मी धरण से बैर लेने का अनेक बार प्रयत्न करती है लेकिन सफलता नहीं मिलती। एक बार धरण और लक्ष्मी किसी जंगल में से जा रहे थे । शबरों ने उन्हें लताओं से बांध लिया और वध के लिये चण्डी के मंदिर में ले चले। इस मंदिर में दुर्गिलक नामके किसी पत्रवाहक को भी मारने के लिये पकड़ कर लाया गया था। दुर्गिलक के केश पकड़ कर उसे एक ओर खड़ा किया गया और उसके शरीर पर रक्त चन्दन का लेप कर दिया गया । एक शबर उससे कहने लगा-"देखो, अब तुम्हें स्वर्ग में जाना है, इसलिये अपने जीवन के सिवाय तुम चाहे जो माँग सकते हो ।” दुर्गिलक इतना डर गया था कि बार-बार पूछे जाने पर भी वह न बोल सका। लेकिन नियम के अनुसार जबतक बलि दिये जानेवाले पुरुष का मनोरथ पूरा न हो जाय उसका वध नहीं किया जा सकता। धरण भी वहीं खड़ा था। उसने सोचा, मुझे भी मरना तो है ही, मैं क्यों न दुर्गिलका को बचा । शबरों ने धरण का वध करने से पहले जब उसकी अन्तिम इच्छा के बारे में प्रश्न किया तो उसने कहा कि दुर्गिलक की जगह मेरा वध कर दिया जाये। ___ यहाँ समुद्रयात्रा के प्रसंग में चीनद्वीप और सुवर्णद्वीप का उल्लेख आता है जिससे पता लगता है कि भारत के व्यापारी बहुत सा माल लेकर चीन और बरमा आदि देशों में जाया करते थे और इन द्वीपों से माल लाकर अपने देश में बेचते थे । चीन से लौटने पर अपनी पत्नी के व्यवहार को देखकर धरण को उसके चरित्र पर संदेह हो गया, लेकिन इस नाजुक बात को दूसरों से कैसे कहे ? समराइञ्चकहा के विद्वान् लेखक ने चित्रण में बड़ी कुशलता से काम लिया है
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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