SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०२ प्राकृत साहित्य का इतिहास ___ एक बार किसी राजकोष में चोरी हो गई । राजकर्मचारियों में क्षोभ मच गया। आखिर चोर का पता लग ही गया तत्थ वि य तंमि चेय दियहे चण्डसेणस्स मुटुं सव्वसारं नाम भंडागारभवणं। तओ आउलीहूया नायरया नगरारक्खिया य । गवेसिज्जति चोरा, मुद्दिजन्ति भवणवीहिओ, परिक्खिज्जति आगन्तुगा। एत्थंतरंमि य संपत्तमेत्ता चेव गहिया इमे रायपुरिसेहिं, भणिया य तेहिं । भद्दा, न तुब्भेहिं कुप्पियव्वं । साहिओ वुत्तन्तो। तेहिं भणियं-को एस अवसरो कोवस्स ? तहिं वच्चामो जत्थ तुम्भे नेह त्ति | नीया पंचउलसमीवं, पुच्छिया पंचालिएहिं, 'कओ तुम्भे' त्ति । तेहिं भणियं-सावत्थीओ। कारणिएहिं भणियं-'कहिं गमिस्सह' ति? तेहिं भणियं'सुसम्मनयरं'। कारणिएहिं भणियं-'किंनिमित्तं' ति ? तेहिं भणियं-'नरवइसमाएसाओ एयं सत्यवाहपुत्तं गेण्हि' त्ति । कारणेएहिं भणियं-'अस्थि तुम्हाणं किंचि दविणजायं ?' तेहिं भणियं 'अत्थि'। कारणएहिं भणियं-किं तयं त्ति ? तेहिं भणियं-'इमस्स सस्थवाहपुत्तस्स नरवइविइण्णं रायालंकरणयं' त्ति। कारणिएहिं भणियं-'पेच्छामो ताव केरिसं' ? तओ विसुद्धचित्तयाए दंसियं । पञ्चभिन्नाए भंडारिएण। -उस समय उसी दिन चंडसेन राजा के सर्वसार नाम के खजाने में चोरी हो गई । नागरिक और नगर के रक्षकों में बड़ा क्षोभ हुआ। चोरों की खोज होने लगी, मकानों की गलियां छंक दी गई। आगन्तुकों की तलाशी ली जाने लगी। इस बीच में वहाँ आते ही इन लोगों को (व्यापारियों को) राजा के कर्मचारियों ने गिरफ्तार कर लिया। उन्होंने कहा-"आप लोग गुस्सा न हो"| उन्होंने सब हाल कह दिया । व्यापारियों ने कहा-"इसमें गुस्से की क्या बात ? जहाँ तुम ले चलो, हम चलने को तैयार हैं।" उन्हें पंचों के पास ले गये। पंचों ने पूछा-तुम लोग कहाँ से आये ? "श्रावस्ती से।" HTHEATHER
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy