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________________ समराइचकहा ४०१ पिंगक-यदि किसी चोर के शरीर को खंड-खंड करके देखा जाय तो भी कहीं जीव दिखाई नहीं देगा, इससे जीव और शरीर की अभिन्नता का ही समर्थन होता है। विजयसिंह-यह उदाहरण ठीक नहीं। किसी अरणि के खंड-खंड करने पर भी उसमें अग्नि दिखाई नहीं देती, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि अरणि में अग्नि है ही नहीं। इससे जीव और शरीर की भिन्नता ही सिद्ध होती है। चौथे भव में गुणसेन और अग्निशर्मा धन और धनश्री के रूप में जन्म लेते हैं। दोनों पति-पत्नी बनते हैं, और पत्नी अपने पति की हत्या करके पूर्वजन्म का बदला लेती है। यहाँ समुद्रयात्रा का वर्णन है । व्यापारी लोग अपने साथ को लेकर धन अर्जन करने के लिये समुद्र की यात्रा करते थे। वे अपने जहाज में माल भरते, दीन-अनाथों को दान देते, समुद्र की पूजा करते, यानपात्र को अर्घ चढ़ाते, और फिर अपने परिजनों के साथ जहाज में सवार होते। उसके बाद पालें उठाते, श्वेत ध्वजायें फहराते, और पवन के वेग से जहाज समुद्र को चीरता हुआ आगे बढ़ने लगता। नगर में पहुँच कर व्यापारी लोग भेंट लेकर राजा से मुलाकात करते और राजा उन्हें ठहरने के लिये आवास देता | व्यापारी अपना माल बेचते और दूसरा माल भर कर आगे बढ़ते । चोरी करने के अपराध में अपराधी के शरीर में कालिख पोतकर, डिंडमनाद के साथ उसे वधस्थान को ले जाया जाता था। राजकर्मचारी वध करनेवाले चांडाल को आदेश देकर लौट जाते । उसके बाद उसे यमगंडिका (यम की गाड़ी) पर बैठाकर चांडाल उसका वध करने के पहले उसकी अंतिम इच्छा के बारे में प्रश्न करता | फिर वह अपराधी के अपराध का उल्लेख कर घोषणा करता कि जो कोई राजा के विरुद्ध इस तरह का अपराध करेगा उसे इसी प्रकार का दण्ड मिलेगा। यह कहकर चांडाल अपनी तलवार से अपराधी के टुकड़े कर डालता । २६ प्रा० सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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