SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०० प्राकृत साहित्य का इतिहास स्वर्ग में गये होंगे | वे मुझसे बहुत प्रेम करते थे। लेकिन अभी तक भी उन्होंने स्वर्ग में से आकर मुझे उपदेश नहीं दिया । विजयसिंह-देखो, जैसे किसी दरिद्र पुरुष को विदेश में जाकर राज्य मिल जाये तो वह अपने स्वजन-संबंधियों को भूल जाता है, इसी प्रकार स्वर्ग का देव ऋद्धि प्राप्त कर अपने मनुष्य-जन्म को भूल जाता है। पिंगक-मान लो, राजा ने किसी चोर को पकड़ कर उसे लोहे के मटके में बन्द कर दिया, और उस घड़े के मुंह पर गर्म शीशे की मोहर लगा दी। कुछ देर बाद वह चोर मटके. के अन्दर ही मर गया। लेकिन यह देखने में नहीं आया कि उसका जीव कहाँ से निकल कर बाहर चला गया। इससे पता लगता है कि जीव और शरीर भिन्न-भिन्न नहीं। विजयसिंह-यह कहना ठीक नहीं है। मान लो, किसी शंख बजानेवाले पुरुष को किसी लोहे के बड़े बर्तन में बैठाकर शंख बजाने के लिये कहा जाये, तो बर्तन में कोई छेद न होने पर भी शंख की ध्वनि दूर तक सुनाई देगी। इसी तरह यहाँ भी समझना चाहिये। पिंगक-किसी चोर को प्राणदंड देने के पहले और प्राणदण्ड देने के बाद तौला जाय तो उसके वजन में कोई अन्तर नहीं पड़ेगा, इससे मालूम होता है कि जीव और शरीर भिन्नभिन्न नहीं हैं। विजयसिंह-यह बात ठीक नहीं है। किसी धोंकनी को यदि उसमें हवा भरने से पहले तौला जाय और फिर हवा भरने के बाद तौला जाय तो दोनों वजन में कोई अन्तर नहीं पड़ेगा,' लेकिन फिर भी धोंकनी से अलग हवा का अस्तित्व स्वीकार किया जाता है। ३. विज्ञान की दृष्टि से यह कथन सत्य नहीं मालम होता।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy