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________________ ३७० प्राकृत साहित्य का इतिहास यह विद्या भी कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में श्मशान में बैठकर सिद्ध की जाती थी। जोगानंद नाम का कोई निमित्तशास्त्र का वेत्ता बसंतपुर से कांचीपुर के लिये प्रस्थान कर रहा था । कलिंगदेश के कालसेन नामक परिव्राजक को पैशाचिक विद्या सिद्ध थी। जोगंधर नाम के किसी सिद्ध को कोई अदृश्य अंजन सिद्ध था जिसे आँखों में आंजकर वह स्वेच्छापूर्वक विहार कर सकता था। आकृष्टि, दृष्टिमोहन, वशीकरण और उच्चाटन में प्रवीण तथा योगशास्त्र में कुशल बल नाम का एक सिद्धपुरुष कामरूप (आसाम) में निवास करता था। इसके अतिरिक्त पुष्पयोनिशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र, जोणीपाहुड, अंगविद्या, चूड़ामणिशास्त्र, गरुडशास्त्र, राजलक्षण, सामुद्रिक, रत्नपरीक्षा, खन्यविद्या, मणिशास्त्र आदि का उल्लेख इस साहित्य में उपलब्ध होता है। तरंगलीला और वसुदेवहिण्डी में अर्थशास्त्र की प्राकृत गाथायें उद्धत की गई हैं। हरिभद्रसूरि ने समराइञ्चकहा में अशोक, कामांकुर और ललितांग को कामशास्त्र में कुशल बताते हुए कामशास्त्र के अध्ययन से धर्म और अर्थ की सिद्धि बताई है। कुवलयमालाकार के कथनानुसार जोणीपाहुड में उल्लिखित कोई भी बात कभी मिथ्या नहीं हो सकती। जैन मान्यतायें ऊपर कहा जा चुका है कि अपनी रचनाओं को लोकरंजक बनाने के लिये जैन विद्वानों ने समन्वयवादी वृत्ति से काम लिया, लेकिन धर्मदेशना का पुट उसमें सदा प्रधान रहा। सत्कर्म में प्रवृत्ति और असत्कर्म से निवृत्ति यही उनका लक्ष्य रहा। लोकप्रचलित कथाओं तथा ब्राह्मण और बौद्धों की कहानियों को जैन ढाँचे में ढालकर इस लक्ष्य की पूर्ति की गई। जगह-जगह दान, शील, तप और सद्भाव का प्रतिपादन कर संयम, तप, त्याग और वैराग्य की मुख्यता पर जोर दिया
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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