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________________ मंत्रशास्त्र ३६९ मंत्रों की जाप करने के लिये मंडप बनाये जाते, तथा उनमें घी, तिल और काष्ठ का हवन किया जाता था। सुरसुन्दरीचरिय में भूत भगाने के लिये नमक उतारना, सरसों मारना और रक्षापोटली बाँधने का उल्लेख है। आख्यानमणिकोष में भैरवानंद का वर्णन है। इस विषय का सबसे विशद वर्णन गुणचन्द्र गणि (देवेन्द्रसूरि ) की रचनाओं में उपलब्ध होता है, जिससे पता लगता है कि उनके युग में मंत्रविद्या का बहुत प्रचार था। . महावीरचरित में घोरशिव तपस्वी का वर्णन है जो वशीकरण आदि विधाओं में कुशल था। श्रीपर्वत से वह आया था और जालंधर के लिये प्रस्थान कर रहा था। राजा ने अपने मंत्र के बल से घोरशिव से कोई चमत्कार प्रदर्शित करने का अनुरोध किया । घोरशिव ने कृष्ण चतुर्दशी को रात्रि के समय श्मशान, में पहुँच वेदिका आदि रच कर मंत्र जपना प्रारंभ कर दिया। महाकाल नामक योगाचार्य मंत्रसिद्धि के लिये प्रधान क्षत्रियों के वध द्वारा अग्नि का तर्पण करना मुख्य समझता था। पार्श्वनाथचरित में बंगाधिपति कुलदेवता कात्यायनी की पूजा करता है। उस समय वहाँ मंत्रविद्या में कुशल और वाममार्ग में निपुण भागुरायण नाम का गुरु निवास करता था। उसने राजा को मंत्र की जाप द्वारा बेताल सिद्ध करने की विधि बताई। हाथ में कैंची लिये हुए बेताल उपस्थित हुआ और उसने राजा से अपने मांस और रक्त द्वारा उसका कपाल भर देने को कहा | शाकिनियों का यहाँ वर्णन है; वट वृक्ष के नीचे एकत्रित होकर एक मुर्दे को लिये वे बैठी हुई थीं। कोई कापालिक विद्या सिद्ध कर रहा था । भैरवों को कात्यायनी का मंत्र सिद्ध रहता है। ये लोग रवि और शशि के पवन संचार को देखकर फलाफल का निर्देशन करते हैं। किसी कुमारी कन्या को स्नान कराकर, उसे श्वेत दुकूल के वस्त्र पहना, उसके शरीर को चंदन से चर्चित कर मंडल के ऊपर बैठाते हैं, फिर वह प्रश्नकर्ता के प्रश्नों का उत्तर देने लगती है। कथारनकोष में सर्पविष का नाश करने के लिये नागकुलों की उपासना का उल्लेख है । २४ प्रा०सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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