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________________ प्राकृत साहित्य का इतिहास पयूषणादशशतक ___ इसके कर्ता प्रवचनपरीक्षा के रचयिता धर्मसागर उपाध्याय हैं।' इसमें ११० गाथायें हैं जिन पर ग्रंथकर्ता ने वृत्ति लिखी है । ईयापथिकीपट्त्रिंशिका धर्मसागर उपाध्याय की यह दूसरी रचना है। इसमें ३६ गाथायें हैं जिन पर ग्रन्थकर्ता की स्वोपज्ञवृत्ति है। देववंदनादिभाष्यत्रय देवेन्द्रसूरि (स्वर्गवास वि० सं० १३२६= ईसवी सन् १२६६) ने देववन्दन, गुरुवन्दन, और प्रत्याख्यानवन्दन के ऊपर भाष्य लिखे हैं। इसमें भगवान के समक्ष चैत्यवन्दन, गुरुओं का वन्दन और प्रत्याख्यान का वर्णन है। सोमसुन्दरसूरि ने इस पर अवचूरि लिखी है। संबोधसप्ततिका इसके कर्ता सिरिवालकहा के रचयिता रत्नशेखरसूरि ( ईसवी सन की १४वीं शताब्दी) हैं। पूर्वाचार्यकृत निशीथचूर्णी आदि अन्थों के आधार से उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना की है। अमरकीर्तिसूरि की इस पर वृत्ति है। इस ग्रंथ में समताभाव, . १. ऋषभदेव केशरीमल संस्था की ओर से सन् १९३६ में सूरत से प्रकाशित । २. देवचन्द लालभाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रंथमाला की ओर से सन् १९१२ में प्रकाशित । ३. आत्मानन्द जैन सभा, भावनगर द्वारा वि० सं० १९६९ में प्रकाशित। ४. विठलजी हीरालाल हंसराज द्वारा सन् १९३९ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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