SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 357
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धम्मपरिक्खा ३४३ सम्यक्त्व, जीवदया, सुगुरु, सामायिक, साधु के गुण, जिनागम का उत्कर्ष, संघ, पूजा, गच्छ, ग्यारह प्रतिमा आदि का प्रतिपादन है । समताभाव के सम्बन्ध में कहा है सेयंबरो य आसंबरो य, बुद्धो य अहव अन्नो वा । समभावभावियप्पा, लहेय मुक्खं न संदेहो ॥ -श्वेताम्बर हो या दिगम्बर, बौद्ध हो या कोई अन्य, जब तक आत्मा में समता भाव नहीं आता, मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। धम्मपरिक्खा (धर्मपरीक्षा) इसके कर्ता उपाध्याय यशोविजय (ईसवी सन १६८६ में स्वर्गवास ) हैं।' इसमें धर्म का लक्षण, संप्रदाय-बाह्यमतखंडन, सूत्रभाषक के गुण, केवलीविषयक प्रश्न, सद्गुरु, अध्यात्मध्यान की स्तुति आदि विषयों का विवेचन है। पौषधप्रकरण इसे पौषधषट्त्रिंशिका भी कहा जाता है। इसके कर्ता जयसोमगणि (ईसवी सन् १५८८) हैं। बादशाह अकबर की सभा में इन्होंने वादियों को परास्त किया था। इसमें ३६ गाथायें हैं जिन पर ग्रन्थकर्ता ने स्वोपज्ञ वृत्ति लिखी है। वैराग्यशतक इसके कर्ता कोई पूर्वाचार्य हैं । गुणविनयगणि ने ईसवी सन् की १७वीं शताब्दी में इस पर वृत्ति लिखी है। इसमें १०५ गाथाओं में वैराग्य का सरस वर्णन किया है। १. हेमचन्द्राचार्य सभा के जगजीवनदास उत्तमचन्द की ओर से सन् १९२२ में अहमदाबाद से प्रकाशित । २. जिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फंड, सूरत की ओर से सन् १९३३ में प्रकाशित । ३. देवचन्दलाल भाई जैन पुस्तकोद्धार ग्रंथमाला में ईसवी सन् १९४१ में प्रकाशित ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy