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________________ धम्मरयणपगरण गाथाओं में यह भाष्य लिखा है।' इस पर वृत्ति भी लिखी गई है। धम्मरयणपगरण (धर्मरत्नप्रकरण ) धर्मरत्नप्रकरण के कर्ता शांतिसूरि हैं, इन्होंने इस पर स्वोपज्ञवृत्ति की भी रचना की है। शांतिसूरि विक्रम की १२ वीं शताब्दी के विद्वान हैं । यहाँ बताया है कि योग्यता प्राप्त करने के लिये श्रावक को प्रकृतिसौम्य, लोकप्रिय, भीरु, अशठ, लज्जालु, सुदीर्घदर्शी आदि गुणों से युक्त होना चाहिये। छह प्रकार का शील तथा भावसाधु के सात लक्षण यहाँ बताये हैं। धम्मविहिपयरण (धर्मविधिप्रकरण) इसके कर्ता श्रीप्रभ हैं जिनका समय ईसवी सन् ११६६ (अथवा १२२६) माना जाता है। इस पर उदयसिंहसूरि ने विवृति लिखी है | धर्मविधि के द्वार, धर्मपरीक्षा, धर्म के दोष, धर्म के भेद, गृहस्थधर्म आदि विषयों का यहाँ विवेचन है। धर्म का स्वरूप प्रतिपादन करते हुए इलापुत्र, उदायन राजा, कामदेव, श्रावक, जंबूस्वामी, प्रदेशी राजा, मूलदेव, विष्णुकुमार, सम्प्रति आदि की कथाएँ वर्णित हैं । हैं। इनमें से कौन से शांतिचन्द्र ने चेइयवंदणभाष्य की रचना की और कौन से ने धर्मरत्नप्रकरण लिखा, इसका निर्णय नहीं हुआ है। देखिये जैनग्रंथावलि, पृ० २४, १८१ के फुटनोट । १. आत्मानन्द जैनसभा, भावनगर की ओर से वि०सं० १९७७ में प्रकाशित। २.जैनग्रंथ प्रकाशक सभा, अहमदाबाद की ओर से वि०सं०१९५३ में प्रकाशित। ३. हसविजय जी फ्री लाइब्रेरी, अहमदाबाद से सन् १९२४ में प्रकाशित । नमसूरि ने भी धर्मविधिप्रकरण की रचना की है जिसमें दस हटान्तों द्वारा ज्ञान और दर्शन की सिद्धि की गई है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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