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________________ चौथा अध्याय दिगम्बर सम्प्रदाय के प्राचीन शास्त्र (ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी से लेकर १६वीं शताब्दी तक) दिगम्बर-श्वेताम्बर सम्प्रदाय पूर्वकाल में श्वेताम्बर और दिगम्बरों में कोई मतभेद नहीं था, दोनों ही ज्ञातपुत्र श्रमण भगवान् महावीर के द्वारा उपदिष्ट निर्ग्रन्थ प्रवचन के अनुयायी थे। महावीर के पश्चात् गौतम, सुधर्मा और जम्बूस्वामी को दोनों ही सम्प्रदाय स्वीकार करते हैं, आचार्य भद्रबाहु को भी मानते हैं । ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी में मथुरा में जो जैन शिलालेख मिले हैं उनसे भी यही ज्ञात होता है कि उस समय तक श्वेताम्बर और दिगम्बर सम्प्रदाय का आविर्भाव नहीं हुआ था। इसके सिवाय दोनों सम्प्रदायों के उपलब्ध साहित्य में १. दिगम्बर परम्परा में जम्बूस्वामी के पश्चात् विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्द्धन और भद्रबाहु का नाम लिया जाता है, जब कि श्वेताम्बर परम्परा में प्रभवस्वामी, शय्यंभवसूरि, यशोभद्रसूरि संभूतविजयसूरि और भद्रबाहुस्वामी का नाम है। __२. श्वेताम्बर मान्यता के अनुसार महावीर निर्वाण के ६०९ वर्ष पश्चात् शिवभूति ने रथवीरपुर नगर में बोटिक ( दिगम्बर ) मत की स्थापना की ( देखिये, आवश्यकभाप्य १४५ आदि; आवश्यकचूर्णी, पृष्ठ ४२७ आदि)। दिगम्बरों की मान्यता जुदी है। दिगम्बर आचार्य देवसेन के मतानुसार राजा विक्रमादित्य की मृत्यु के १३६ वर्ष बाद
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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