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________________ २७० प्राकृत साहित्य का इतिहास प्राचीन परम्परागत विषय और गाथाओं आदि की समानता पाई जाती है। उदाहरण के लिये, भगवती-आराधना और सूलाचार का प्रतिपाद्य विपय और गाथायें संथारग, भत्तपरिण्णा, मरणसमाही, पिंडनियुक्ति, आवश्यकनियुक्ति और बृहत्कल्पभाष्य आदि के विषय और गाथाओं के साथ अक्षरशः मिलते हैं। इससे भी यही सिद्ध होता है कि दोनों सम्प्रदायों का सामान्य स्रोत एक ही था। लेकिन आगे चलकर ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी के आस-पास, विशेष करके अचेलत्व के प्रश्न को लेकर', दोनों में मतभेद हो गया। आगे चलकर आगमों को स्वीकार करने के सम्बन्ध में भी दोनों की मान्यतायें जुदी पड़ गई। वलभी नगर में श्वेताम्बर संघ की उत्पत्ति हुई। इस संबंध में एक दूसरी भी मान्यता है। उज्जैनी में चन्द्रगुप्त के राज्यकाल में भद्रबाहु के शिष्य विशाखाचार्य अपने संघ को लेकर पुन्नाट चले गये, तथा रामिल्ल, स्थूलभद्र और भद्राचार्य सिन्धुदेश में विहार कर गये। जब सब लोग उज्जैनी लौटकर आये तो वहाँ दुष्काल पड़ा हुआ था। इस संघ के आचार्य ने नग्नत्व ढांकने के लिये अर्धफालक धारण करने का आदेश दिया। लेकिन दुष्काल समाप्त होने के पश्चात् इस की कोई आवश्यकता न समझी गई। फिर भी कुछ लोगों ने अर्धफालक का स्याग नहीं किया। इसी समय से श्वेताम्बर मत की उत्पत्ति हुई मानी जाती है । देखिये हरिषेण, बृहत्कथाकोष १३१; देवसेन, दर्शनसार ; भधारक रत्ननन्दि, भद्रबाहुचरित । मथुरा शिलालेखों के लिये देखिये आर्कियोलोजिकल सर्वे रिपोर्ट्स, जिल्द ३, प्लेट्स १३-१४; बुहलर, द इण्डियन सैक्ट ऑव द्र जैन्स, पृ० ४२-६०, वियना ओरिटिएल जरनल, जिल्द ३ और ४ में बुहलर का लेख १. श्वेताम्बरों आगमों में सचेलत्व और अचेलत्व दोनों मान्यतायें पाई जाती हैं। २. मेघविजयगणि के युक्तिप्रबोध ( रतलाम, वि० सं० १९८४) में दिगम्बर और श्वेताम्बर के ८४ मतभेदों का वर्णन है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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