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________________ २६८ प्राकृत साहित्य का इतिहास ___ इस प्रकार आगम और उनकी व्याख्याओं के रूप में लिखे गये इस विशाल साहित्य का अध्ययन करने से हमें कई बातों का पता चलता है। सबसे पहले तो यही कि लोक-प्रचलित भारत की प्राचीन कथा-कहानियों को जैन विद्वानों ने प्राकृत कथाओं के रूप में सुरक्षित रक्खा । इन कथाओं में से बहुत सी कथाएँ जातककथा, सरित्सागर, पंचतंत्र, हितोपदेश, शुकसप्तति आदि में पाई जाती हैं, और ईसप की कहानियाँ, अरेबियन नाइट्स, कलेला दमना की कहानी आदि के रूप में सुदूर देशों में भी पहुँची हैं। जैन मुनियों ने अपने उपदेशों के दृष्टांत रूप में इन कहानियों का यथेष्ट उपयोग किया है। दूसरे प्रकार की कथायें पौराणिक कथायें हैं जिन्हें रामायण, महाभारत आदि ब्राह्मणों के ग्रंथों से लेकर जैनरूप में ढाला गया है। राम, कृष्ण, द्रौपदी, द्वीपायन ऋषि द्वारकादहन, गंगा की उत्पत्ति आदि की कथाओं का इसी प्रकार की कथाओं में अन्तर्भाव होता है। करकंडू आदि प्रत्येकबुद्धों की कथाएँ बौद्ध जातकों की कथाओं से मिलती-जुलती हैं। द्वीपायन ऋषि की कथा कण्हदीपायनजातक, वल्कलचीरी की कथा बौद्धों की उदान-अट्ठकथा और कुणाल की कथा दिव्यावदान में आती है। अनेक कथायें मूल सर्वास्तिवाद के विनयवस्तु में कही गई हैं। रोहक और कनकमंजरी की कथाएँ अत्यन्त मनोरंजक और कल्पनाशक्ति की परिचायक हैं जिनकी तुलना क्रम से बौद्ध जातकों के महोसव पंडित और अरेबियन नाइट्स की शहरजादे से की जा सकती है। इसी प्रकार शकटाल, चन्द्रगुप्त, चाणक्य, स्तेयशास्त्र के प्रवर्तक मूलदेव, मंडित चोर, देवदत्ता गणिका और अगडदत्त आदि की कथायें विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं। डाक्टर विन्टरनीज के शब्दों में कहा जाय तो “जैन-टीका-साहित्य में भारतीय प्राचीन कथा-साहित्य के अनेक उज्ज्वल रत्न विद्यमान हैं जो अन्यत्र उपलब्ध नहीं होते।"
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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