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________________ अन्यटीकार्य २६७ उत्तर-जिसने कन्या को जिलाया वह उसका पिता है, जिसके साथ वह जीवित हुई वह उसका भाई है, इसलिए जिसने अनशन किया था कन्या उसे ही दी जानी चाहिए। दशवैकालिकसूत्र की वृत्ति में भी हरिभद्र ने अनेक सरस लोककथायें, उदाहरण और दृष्टांत आदि उद्धृत किये हैं । अभयदेवसूरि ने स्थानांगसूत्र की टीका में देश-देश की स्त्रियों के स्वभाव का सुंदर चित्रण किया है। यहाँ पर उन्होंने चौलुक्य की कन्याओं के साहस की और लाट देश की स्त्रियों की रमणीयता की प्रशंसा की है, तथा उत्तरदेश की नारियों को धिक्कारा है अहो चौलुक्यपुत्रीणां साहसं जगतोऽधिकम् । पत्युर्मुत्यौ विशन्त्यग्नौ या प्रेमरहिता अपि । चन्द्रवक्त्रा सरोजाक्षी सद्गी: पीनघनस्तनी। किं लाटी नो मता साऽस्य देवानामपि दुर्लभा । धिङ्नारीरौदीच्या बहुवसनाच्छादितांगलतिकत्वात् । यद्यौवनं न यूनां चक्षुमोदाय भवति सदा ।। शीलांक ने सूत्रकृतांग की टीका में अपभ्रंश की निम्न गाथा उद्धृत की है वरि विस खइयं न विसयसुहु, इक्कसि विसिण मरंति । विसयामिस पुण घारिया, पर णरएहि पडंति ॥ -विष खाकर मरना अच्छा है, विषय-सुख का सेवन करना अच्छा नहीं। पहले प्रकार के लोग विष खाकर मर जाते हैं, लेकिन दूसरे प्रकार के विषयासक्ति से पीड़ित हो मर कर नरक में दुख भोगते हैं। गच्छाचार की वृत्ति में भद्रबाहु और वराहमिहिर नाम के दो सगे भाइयों के वृत्तांत का विस्तार से कथन है । वराहमिहिर चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति के ज्ञाता तथा अंगोपांग और द्रव्यानुयोग में पारंगत थे । चन्द्रसूर्यप्रज्ञप्ति के आधार से उन्होंने वाराहीसंहिता नामक ज्योतिप के ग्रन्थ की रचना की थी।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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