SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६ प्राकृत साहित्य का इतिहास जैन-श्रमण संघ के प्राचीन इतिहास को सम्यक् प्रकार से समझने के लिये उक्त तीनों भाष्यों का गंभीर अध्ययन आवश्यक है। हरिभद्रसूरि के समकालीन संघदासगणि क्षमाश्रमण, जो वसुदेवहिण्डी के कर्ता संघदासगणि वाचक से भिन्न हैं, कल्प, व्यवहार और निशीथ भाष्यों के कर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं। निम्नलिखित ग्यारह सूत्रों के भाष्य उपलब्ध हैं-निशीथ, व्यवहार, कल्प, पंचकल्प, जीतकल्प, उत्तराध्ययन, आवश्यक, दशवैकालिक, पिंडनियुक्ति, ओघनियुक्ति | आगमेतर ग्रंथों में चैत्यवंदन, देववंदनादि और नवतत्त्वगाथाप्रकरण आदि पर भी भाष्य लिखे गये हैं। चुण्णि (चूर्णी) आगमों के ऊपर लिखे हुए व्याख्या-साहित्य में चूर्णियों का स्थान बहुत महत्त्व का है। चूर्णियाँ गद्य में लिखी गई हैं। संभवतः पद्य में लिखे हुए नियुक्ति और भाष्य-साहित्य में जैनधर्म के सिद्धांतों को विस्तार से प्रतिपादन करने के लिये अधिक गुंजायश नहीं थी। इसके अलावा, चूर्णियाँ केवल प्राकृत में ही न लिखी जाकर संस्कृतमिश्रित प्राकृत में लिखी गई थीं, इसलिये भी इस साहित्य का क्षेत्र नियुक्ति और भाष्य की अपेक्षा अधिक विस्तृत था। चूर्णियों में प्राकृत की प्रधानता होने के कारण इसकी भाषा को मिश्र प्राकृत भाषा कहना सर्वथा उचित ही है। चूर्णियों में प्राकृत की लौकिक, धार्मिक अनेक १. निशीथ के विशेषचूर्णिकार ने चूर्णी की निम्न परिभाषा दी है-पागडो ति प्राकृतः प्रगटो वा पदार्थो वस्तुभावो यत्र सः, तथा परिभाष्यते अर्थोऽनयेति परिभाषा चूर्णिरुच्यते । अभिधानराजेन्द्रकोष में चूर्णी की परिभाषा देखिए अस्थबहुलं महत्थं हेउनिवाओवसग्गगंभीरं । बहुपायमवोच्छिन्नं गमणयसुद्धं तु चुण्णपयं ॥ जिसमें अर्थ की बहुलता हो, महान् अर्थ हो, हेतु, निपात और
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy