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________________ भास १९५ श्रुतकेवलि भद्रबाहु से भिन्न हैं ।' दुर्भाग्य से बहुत से आगमों की नियुक्ति और भाष्य की गाथायें परस्पर इतनी मिश्रित हो गई हैं कि चूर्णीकार भी उन्हें पृथक् नहीं कर सके । नियुक्तियों में अनेक ऐतिहासिक, अर्ध-ऐतिहासिक और पौराणिक परंपरायें, जैनसिद्धांत के तत्व और जैनों के परंपरागत आचार-विचार सन्निहित हैं। भास ( भाष्य ) नियुक्तियों की भाँति भाष्य भी प्राकृत गाथाओं में संक्षिप्त शैली में लिखे गये हैं। बृहत्कल्प, दशवकालिक आदि सूत्रों के भाष्य और नियुक्ति की गाथायें परस्पर अत्यधिक मिश्रित हो गई हैं, इसलिये अलग से उनका अध्ययन करना कठिन है। नियुक्तियों की भाषा के समान भाष्यों की भाषा भी मुख्यरूप से प्राचीन प्राकृत (अर्धमागधी) है; अनेक स्थलों पर मागधी और शौर शौरसेनी के प्रयोग भी देखने में आते हैं। मुख्य छंद आर्या है। भाष्यों का समय सामान्य तौर पर ईसवी सन् की लगभग चौथी-पाँचवी शताब्दी माना जा सकता है। भाष्यसाहित्य में खासकर निशीथभाष्य, व्यवहारभाष्य और बृहत्कल्पभाष्य का स्थान अत्यंत महत्व का है। इस साहित्य में अनेक प्राचीन अनुश्रुतियाँ, लौकिक कथायें और परंपरागत निग्रंथों के प्राचीन आचार-विचार की विधियों आदि का प्रतिपादन है। १. अगस्त्यसिंह की दशवैकालिकचूर्णी में प्रथम अध्ययन की नियुक्ति गाथाओं की संख्या कुल ५४ है जब कि हरिभद्र की टीका में । यह संख्या १५६ तक पहुंच गई है, इससे भी नियुक्ति और भाष्य की गाथाओं में गड़बड़ी होने का पता चलता है ( देखिये वही)। २. इसिभासिय के ऊपर भी नियुक्ति थी लेकिन सूर्यप्रज्ञप्ति की नियुक्ति की भांति यह भी अनुपलब्ध है। महानिशीथ के अनुसार पंचमंगलश्रुतस्कंध के ऊपर भी नियुक्ति लिखी गई थी। मूलाचार (५, ८२) में आराधनानियुक्ति का भी उल्लेख है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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