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________________ चुण्णि . १९७ कथायें दी हैं, प्राकृत भाषा में शब्दों की व्युत्पत्ति दी है तथा संस्कृत और प्राकृत के अनेक पद्य उद्धृत किये हैं। चूर्णियों में निशीथ की विशेषचूर्णी तथा आवश्यकचूर्णी का स्थान बहुत महत्त्व का है। इनमें जैन पुरातत्त्व से संबंध रखनेवाली विपुल सामग्री मिलती है। देश-देश के रीति-रिवाज, मेले-त्योहार, दुष्काल, चोर-लुटेरे, सार्थवाह, व्यापार के मार्ग, भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि विषयों का इस साहित्य में वर्णन है जिससे जैन आचार्यों की जनसंपर्क की वृत्ति, व्यवहारकुशलता और उनके व्यापक अध्ययन का पता लगता है। लोककथा और भाषाशास्त्र की दृष्टि यह साहित्य अत्यन्त उपयोगी है। वाणिज्यकुलीन कोटिकगणीय वज्रशाखीय जिनदासगणि महत्तर अधिकांश चूर्णियों के कर्ता के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनका समय ईसवी सन् की छठी शताब्दी के आसपास माना जाता है। निम्नलिखित आगमों पर चूर्णियाँ उपलब्ध हैं-आचारांग, सूत्रकृतांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, कल्प, व्यवहार निशीथ, पंचकल्प, दशाश्रुतस्कंध जीतकल्प, जीवाभिगम, जग्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, उत्तराध्ययन, आवश्यक, दशवैकालिक, नन्दी और अनुयोगद्वार । आगमेतर ग्रन्थों में श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, सार्धशतक तथा कर्मग्रन्थों पर चूर्णियाँ लिखी गई हैं। टीका · नियुक्ति, भाष्य, और चूर्णियों की भांति आगमों के ऊपर विस्तृत टीकायें भी लिखी गई हैं जो आगम सिद्धान्त को उपसर्ग से जो युक्त हो, गंभीर हो, अनेक पदों से समन्वित हो, जिसमें अनेक गम (जानने के उपाय ) हो और जो नयों से शुद्ध हो उसे चूर्णीपद समझना चाहिये। बौद्ध विद्वान् महाकच्चायन निरुक्ति के कर्ता कहे गये हैं। निरुक्ति दो प्रकार की है, चूलनिरुक्ति और महानिरुक्ति, देखिए जी० पी० मलालसेकर, डिक्शनरी ऑव पाली प्रोपर नेम्स, जिल्द २, पृष्ठ ७९ ।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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