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________________ १९४ प्राकृत साहित्य का इतिहास (णिज्जुत्ता तेअत्था, जंबद्धा तेण होइ णिज्जुत्ती')। नियुक्ति आगमों पर आर्या छंद में प्राकृत गाथाओं में लिखा हुआ संक्षिप्त विवेचन है। इसमें विषय का प्रतिपादन करने के लिए अनेक कथानक, उदाहरण और दृष्टांतों का उपयोग किया है, जिनका उल्लेखमात्र यहाँ मिलता है। यह साहित्य इतना सांकेतिक और संक्षिप्त है कि बिना भाष्य और टीका के सम्यक प्रकार से समझ में नहीं आता। इसीलिए टीकाकारों ने मूल आगम के साथ-साथ नियुक्तियों पर भी टीकायें लिखी हैं। प्राचीन गुरु परम्परा से आगत पूर्व साहित्य के आधार पर ही नियुक्तिसाहित्य की रचना की गई जान पड़ती है। संक्षिप्त और पद्यबद्ध होने के कारण यह साहित्य आसानी से कंठस्थ किया जा सकता था और धर्मोपदेश के समय इसमें से कथा आदि के उद्धरण दिये जा सकते थे । पिंडनियुक्ति और ओघनियुक्ति आगमों के मूलसूत्रों में गिनी गई हैं, इससे नियुक्ति-साहित्य की प्राचीनता का पता चलता है कि वलभी वाचना के समय, ईसवी सन् की पांचवीं-छठी शताब्दी के पूर्व ही, नियुक्तियाँ लिखी जाने लगी थीं। नयचक्र के कर्ता मल्लवादी (विक्रम संवत् की ५ वीं शताब्दी) ने अपने ग्रन्थ में नियुक्ति की गाथा का उद्धरण दिया है, इससे भी उक्त कथन का समर्थन होता है। आचारांग, . सूत्रकृतांग, सूर्यप्रज्ञप्ति, व्यवहार, कल्प, दशाश्रुतस्कंध उत्तराध्ययन, आवश्यक, दशवैकालिक और ऋषिभाषित इन दस सूत्रों पर नियुक्तियाँ लिखी गई हैं | इनके लेखक परंपरा के अनुसार भद्रबाहु माने जाते हैं जो संभवतः छेदसूत्र के कर्ता अंतिम १. नियुक्तानामेव सूत्रार्थानां युक्ति:-परिपाट्या योजनं । हरिभद्र, दशवैकालिक-वृत्ति, पृष्ठ । २. देखिये मुनिपुण्यविजय जी द्वारा संपादित बृहस्कल्पसूत्र, भाग ६ का आमुख, पृष्ठ ६। । ३. मुनि पुण्यविजयजी विक्रम की दूसरी शताब्दी नियुक्तियों
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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