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________________ तीसरा अध्याय आगमों का व्याख्या-साहित्य ( ईसवी सन् की लगभग २सरी शताब्दी से लेकर १६वीं शताब्दी तक) पालि त्रिपिटक पर बुद्धघोष की अट्ठकथाओं की भांति आगम-साहित्य पर भी नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी, टीका, विवरण, विवृति, वृत्ति, दीपिका, अवचूरि, अवचूर्णी विवेचन, व्याख्या, छाया, अक्षरार्थ, पंजिका, टब्बा, भाषाटीका, वचनिका आदि विपुल व्याख्यात्मक साहित्य लिखा गया है। इसमें से बहुत कुछ प्रकाश में आ गया है और अभी बहुत कुछ भंडारों में पड़ा हुआ है। आगमों का विषय इतना गंभीर और पारिभाषिक है कि व्याख्यात्मक साहित्य के बिना उसे समझना कठिन है । वाचनाभेद और पाठों की विविधता के कारण तथा अनेक वृद्ध सम्प्रदायों के विस्मृत हो जाने के कारण यह कठिनाई और बढ़ जाती है। आगमों के टीकाकारों ने इस ओर जगह-जगह लक्ष्य किया है। प्राकृत साहित्य के इतिहास की अध्ययन की दृष्टि से इस व्याख्यात्मक साहित्य में नियुक्ति, भाष्य, चूर्णी तथा कतिपय टीकायें प्राकृतबद्ध होने के कारण महत्वपूर्ण हैं। इन चार के साथ आगमों को मिला देने से यह साहित्य पंचांगी कहा जाता है। पंचागी का अध्ययन प्राकृत साहित्य के क्रमिक विकास को समझने के लिए अत्यंत उपयोगी है। निज्जुत्ति (नियुक्ति) व्याख्यात्मक ग्रन्थों में नियुक्ति का स्थान सर्वोपरि है। सूत्र में निश्चय किया हुआ अर्थ जिसमें निबद्ध हो उसे नियुक्ति कहा है १३ प्रा० सा०
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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