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________________ उत्तरज्झयण १६७ एक क्षण के लिये भी प्रमाद न करने का उपदेश है । हरिकेशीय अध्ययन में चांडाल कुल में उत्पन्न हरिकेशबल नाम के भिक्षु का वर्णन है।' यह भिक्षु ब्राह्मणों की यज्ञशाला में भिक्षा माँगने गया जब कि ब्राह्मणों ने उसका अपमान कर उसे वहाँ से भगा दिया । अंत में हरिकेशबल ने ब्राह्मणों को हिंसामय यज्ञ-याग के त्याग करने का उपदेश दिया। तेरहवें अध्ययन में चित्त और संभूति के नाम के चांडाल-पुत्रों की कथा है । इषुकारीय अध्ययन में किसी ब्राह्मण के दो पुत्र अपने पिता को उपदेश देकर सन्मार्ग पर लाते हैंपिता-केण अब्भाहओ लोओ, केण वा परिवारिओ। का वा अमोहा वुत्ता, जाया ! चिंतावरो हु मि ॥ -यह लोक किससे पीड़ित है, किससे व्याप्त है ? कौन से अमोघ शस्त्रों का प्रहार इस पर हो रहा है ? हे पुत्रो, यह जानने के लिये मैं चिन्तित हूँ| पुत्र-मञ्चणऽन्भाहओ लोओ, जराए परिवारिओ । अमोहा रयणी वुत्ता, एवं ताय ! वियाणह ॥ -हे पिता, यह लोक मृत्यु से पीड़ित है, जरा से व्याप्त • है, और रात्रियाँ अमोघ प्रहार द्वारा इसे क्षीण कर रही हैं। लिटरेचर इन ऐशियेण्ट इण्डिया' नामक अध्याय ; हिस्ट्री ऑव इण्डियन लिटरेचर, जिल्द २, पृ० ४६६-७० ; जाल शाण्टियर, उत्तराभ्ययन भूमिका, पृ० ४४ इत्यादि; ए० एम० घाटगे, एनेल्स ऑव भांडारकर ओरिण्टिएल रिसर्च इंस्टिटयूट, जिल्द १७, १९३६ में 'ए फ्यू पैरेलल्स इन जैन एण्ड बुद्धिस्ट वर्क्स' नामक लेख । . १. मिलाइये चित्तसंभूत जातक के साथ । २. हरिकेश मुनि की कथा प्रकारान्तर से मांतग जातक में दी हुई है। डॉक्टर आल्सडोर्फ ने इस संबंध में वेल्वेल्कर फेलिसिटेशन वॉल्यूम, दिल्ली, १९५७ में इस सम्बन्ध में एक लेख प्रकाशित किया है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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