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________________ १६८ प्राकृत साहित्य का इतिहास अपने पिता के प्रबुद्ध हो जाने पर अन्त में उसके पुत्र कहते हैं जस्सऽत्थि मच्चुणा सक्खं, जस्स वऽस्थि पलायणं । जो जाणइ न मरिस्सामि, सो हु कंखे सुए सिया ।। -जिसकी मृत्यु के साथ मित्रता है, अथवा जो मृत्यु का नाश करता है, और जिसे यह विश्वास है कि वह मरनेवाला नहीं, वही आगामी कल का विश्वास करता है। _ अन्त में ब्राह्मण अपनी पत्नी और दोनों पुत्रों के साथ संसार का त्याग कर श्रमणधर्म में दीक्षित हो जाता है।' ___ पन्द्रवें अध्ययन में सद्भिक्षु के लक्षण बताये हैं। सतरहवें अध्ययन में पाप-श्रमण के लक्षण कहे हैं। अठारहवें अध्ययन में संजय राजा का वर्णन है जिसने मुनि का उपदेश श्रवण कर श्रमणधर्म में दीक्षा ग्रहण की। यहाँ भरत आदि चक्रवर्ती तथा नमि, करकण्डू, दुर्मुख और नग्नजित् प्रत्येकबुद्धों के दीक्षित होने का उल्लेख है। उन्नीसवें अध्ययन में मृगापुत्र की दीक्षा का वर्णन है। बीसवें अध्ययन में अनाथी मुनि का जीवन-वृत्तान्त है । राजा श्रेणिक ने एक वृक्ष के नीचे बैठे हुए किसी मुनि को देखकर उससे प्रश्न किया तरुणो सि अज्जो पव्वइओ, भोगकालम्मि संजया । . उवविट्ठोसि सामन्ते, एयमझें सुणेमि ता ॥ -हे आर्य ! कृपाकर कहिये कि भोगों को भोगने योग्य इस तरुण अवस्था में आपने क्यों यह दीक्षा ग्रहण की है ? मुनि-अणाहो मि महाराय ! णाहो मज्झ न विजई । ____ अणुकंपगं सुहि वा वि, कंची णाभिसमेमऽहं ॥ ... १. मिलाइये हस्थिपाल जातक के साथ । .. २. मिलाइये सुत्तनिपात के पबज्जासुत्त के साथ । ३. कुम्भकार जातक में चार प्रत्येकबुद्धों का उल्लेख मिलता है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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