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________________ विवागसुय दसाओ नाम से कहा है। स्थानांगसूत्र के अनुसार उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अगुत्तरोववाइयदसाओ और पण्हवागरणदसाओ की भाँति इसमें भी दस अध्ययन होने चाहिये, लेकिन हैं इसमें बीस | इसमें दो श्रुतस्कंध हैं-दुखविपाक और सुखविपाक | दोनों में दस-दस अध्ययन हैं। गौतम गणधर बहुत से दुखी लोगों को देखकर उनके संबंध में महावीर से प्रश्न करते हैं और महावीर उनके पूर्वभवों का वर्णन करते हैं। अभयदेव सूरि ने इस पर टीका लिखी है। प्रद्युम्नसूरि की भी टीका है। __ प्रथम श्रुतस्कंध के पहले अध्ययन में मियापुत्त की कथा है। मियापुत्त विजय क्षत्रिय का पुत्र था जो जन्म से अन्धा, गूंगा और बहरा था; उसके हाथ, पैर, कान, आँख और नाक की केवल आकृतिमात्र दिखाई देती थी। उसकी माँ उसे भौंतले में भोजन खिलाती थी। एक बार गौतम गणधर महावीर की अनुज्ञा लेकर मियापुत्त को देखने के लिये उसके घर गये। तत्पश्चात् गौतम के प्रश्न करने पर महावीर ने मियापुत्त के पूर्वभव का वर्णन किया। पूर्वजन्म में मियापुत्त इकाई नाम का रहकूड (राठौर ) था जो ग्रामवासियों से बड़ी कूरता से कर आदि वसूल कर उन्हें कष्ट देता था। एक बार वह व्याधि से पीड़ित हुआ । एक से एक बढ़कर अनेक वैद्यों ने उसकी चिकित्सा की, किन्तु कोई लाभ न हुआ | मर कर उसने विजय क्षत्रिय के घर जन्म लिया । __ दूसरे अध्ययन में उज्झिय की कथा है। उझिय वाणियगाम के विजयमित्र सार्थवाह का पुत्र था । गौतम गणधर वाणियगाम में भिक्षा के लिये गये | वहाँ उन्होंने हाथी, घोड़े और बहुत से पुरुषों का कोलाहल सुना। पता लगा कि राजपुरुष किसी की मुश्क बाँध कर उसे मारते-पीटते हुए लिये जा रहे हैं । गौतम के प्रोफेसर ए. टी. उपाध्ये ने अंग्रेजी अनुवाद किया है जो बेलगाँव से १९३५ में प्रकाशित हुआ है।
SR No.010730
Book TitlePrakrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1961
Total Pages864
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size45 MB
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