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________________ २८1 सूत्रकृतांग सूत्र. ... ........................................................ स्त्री बारबार उसका तिरस्कार करके बच्चे को बहलाने को कहती है तथा अनेक बार क्रोधित होकर उसे फेंक देने का कह देती है ! रात को भी उसे नींद में उठकर पुत्र को लोरी गाकर सुलाना पडता है। और शरम पाने पर भी स्त्री को खुश करने के लिये, उसके कपडे धोने. पडने है। [१२-५७ ]. इस प्रकार भोग के लिये स्त्रियों के वश में हुए अनेक भिक्षुओं ने किया है । इसलिये, बुद्धिमान् पुरुष स्त्रियों की प्रारम्भ की लुभाने वाली विनंतियों पर ध्यान देकर उसका परिचय और सहवास : न बढावे । स्त्रियों के साथ के कामभोग हिंसा परिग्रहादि सब महापापों के कारण हैं; ऐसा ज्ञानी मनुष्यों ने कहा है। ये भोग नामरूप हैं और कल्याण से विमुख करने वाले हैं । इसलिये, निर्मल . चित्तवाला बुद्धिमान् भिचु आत्मा के सिवाय सब पर पदार्थो की इच्छा का त्याग करके, मन, वचन, और कायासे. सक परिपह सहन करते करते, मोक्ष प्राप्त होने तक, वीर भगवान् के बताए हुए मार्ग का अनुसरण करे । [१८ २२] - ऐसा श्री सुधर्मास्वामी ने कहा ।
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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