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________________ पांचवा अध्ययन -(0) पाप का फल श्री सुधर्मास्वामी ने कहा मैंने एक बार महर्षि केवली महावीर से पूछा था-" हे मुनि ! अज्ञानियों की नरक में कैसी दशा होती है ? दुःख होते हैं ? इनको मैं नहीं जानता, कहियेगा ।" [8] वहां किस प्रकार के इसलिये आप मुझे इस पर, तीव्रबुद्धि काश्यप (नहावीर ) ने उत्तर दिया- "सुन, पापकर्मी 'दीन वनकर कैसे अपार दुःख भोगते हैं. मैं कहता हूं । अपने जीव के लिये पाप-कर्म करनेवाले मंदबुद्धि निर्दय लोग, अपने सुख के कारण प्राणियों की खुलेयाम हिंसा करनेवाले, उनको अनेक प्रकार से वास देनेवाले, चोरी करनेवाले, जरा भी संयमधर्भ नहीं रखनेवाले और धृष्टतापूर्वक निरन्तर प्राणी-वध करते रहनेवाले ऐसे ऐसे पाप-कर्मी ज्ञानी लोग नरकगामी बनते हैं । [ २५ ] 66 ' नारकियों को दुःखदण्ड देने वाले देव, ' मारो, काटो, चीरो, जलाओ' ऐसी गर्जना करते रहते हैं । बेचारे नरकगामी यह सुनकर भय से हक्के-बक्के वनकर कहीं भागना चाहते हैं, पर उनको रास्ता ही नहीं मिल पाता । इस पर बेबस होकर वे दुःख ताप से दुःखीं हो चीत्कार करते हुए वहीं लम्बे समय तक जलते रहते हैं । [ ६-७ ]
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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