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________________ ............ ...... .. .....fuuNav n.nn स्त्री-प्रसंग २७ व्यवस्था करने के लिये भिक्षु को कहती है । अपने झूठे वर्तन भी उससे साफ करवाती है और पैर दबवाती है। उसके लिये गंध आदि पदार्थ, अन्नवस्त्र तथा ( केश-लुंचन न बन सकने के कारण) नाई की भी व्यवस्था उसी को करनी पड़ती है। [१६] - यह तो साध्वी बनी हुई स्त्री के गृह-संसार की बात हुई । पर यदि वह भित्तु गृहस्थी स्त्री के साथ ही बंध जाता है तो फिर उसको उस स्त्री के लिये लाने की चीजों का पार नहीं रहता । सुवह ही दाँत साफ करने के लिये मंजन, स्नान के लिये लोध चूर्ण या आंवले, मुँह में रगडने के लिये तैल, होठ पर लगाने का नंदीचूर्ण, वेणी में पहिनने के लिये लोध्रकुसुम, नाक के वाल उखाडने के लिये चिमटी, बाल काटने के लिये कंघी, वेणी बांधने को उन की डोरी, तिलक “निकालने की सलाई कंकू और काजल; इसके उपरान्त पहिनने के वस्त्र और आभूषण; सिवाय इसके खाने पीने की वस्तुएँ और उनके साधनों की व्यवस्था; घडा तपेली शाक-भाजी, अनाज, सुपडा, मूसला " आदि; और सबके बाद पान-सुपारी । इसके बाद छतरी, मौजे, सूई डोरा, कपडे धोने का सोटा तथा कपड़ों का रंग फीका पड़ने पर उनको रंगने की व्यवस्था भी करनी होती है । सगीत के लिये विणा ग्रादि बाडों और वर्षा काल में घर, अनाज, नई रस्सी का खाट और कीचड में पैर खराब न हो इससे लिये पहिनने का खडाऊ अादि भी चाहिये ही ! [७-१५] ऐसा करते करते यदि वह गर्भिणी हो गई तो उसकी मांगों ... का पार नहीं रहता है। उनको भी उसे नाक में दम आने तक पूरी - . करनी होती हैं । दापती-जीवन के फलरूप में पुत्र उत्पन्न हो तव . तो उस भिक्षु और लहु उंट में कुछ अन्तर नहीं रहता। उसकी
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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