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________________ सूत्रकृतांग सूत्र सच्चा ज्ञान प्राप्त करने के लिये सांसारिक सम्बन्धों को त्याग करके निकले हुए भिक्षु को, सबसे पहिले अपने पूर्व-सम्वन्धियों के प्रति ममता को दूर करना पडता है। किसी समय वह भिक्षा के लिये अपने घर को ही या जाता है, तब वे सब उसको चारों ओर से घेर कर विनय, ग्राग्रह रुदन यादि द्वारा समझाने लगते हैं । वृद्व माता-पिता उसे फटकारते हैं कि, " हमको इस प्रकार असहाय छोडकर चजे जाने के बदले, हमारा भरण पोषण कर यह तेरी मुख्य कर्त्तव्य हैं, इसको टाल कर तू क्या पुण्य प्राप्त कर सकेगा । इसके सिवाय वे उसको एक वंश - रक्षक पुन उत्पन्न होने तक घर में रहने के लिये समझाते हैं; अनेक प्रकार के लालच बतलाते हैं । कई वार जबरदस्ती करते हैं । परन्तु जिसको जीवन पर ममता नहीं होती, ऐसे भिक्षु का वे कुछ नहीं कर सकते | सम्वन्धियों में ममत्व रखनेवाले १२] यमी भिक्षु तो उस समय मोह को प्राप्त हो जाते हैं, और 'घर वापिस लौटकर, चे धृष्टतापूर्वक दूने दूने पाप कर्म करते हैं ! श्रतएव बुद्धिमान भिक्षु को पहिले अपनी माया ममता दूर करने का करना चाहिये | इस महामार्ग में पराक्रमी पुरुष ही अन्त तक स्थिर रह सकते हैं । [ १६-२२ ] प्रयत्न (*) अपने सम्बन्धियों में ममत्व रखने के समान ही इस मार्ग में दूसरा वा विघ्न ' अहंकार ' है । अनेक भिक्षु अपने गोत्र श्रादि का अभिमान करते हैं और दूसरे का तिरस्कार करते हैं; परन्तु सच्चा . मुनि तो अपनी मुक्तावस्था तक का गर्व नहीं करता । वैसे ही, सच्चा चक्रवर्ती राजा सन्यासी बने हुए अपने एक दासानुदास का विना संकोच के यथा योग्य सम्मान करता है । ग्रहंकार पूर्वक दूसरे का 1
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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