SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३० ] सूत्रकृतांग सूत्र अधार्मिक-मनुष्य अपने लिये नरकादि गति तैयार करते हैं । दूसरे ★ अनेक अप इच्छा, प्रवृत्ति और परिग्रह से युक्त धार्मिक मनुष्य देवगति अथवा मनुष्य गति तैयार करते हैं, दूसरे अनेक रण्य में, आश्रमों में, गांव बाहर रहने वाले तथा गुप्त क्रियादि साधन करने चाले तापस यादि संयम और विरति को स्वीकार न करके कामभोगों में आसक्त और मूर्छित रह कर अपने लिये असुरी तथा पातकी के स्थान में जन्म लेने और वहां से छूटने पर भी अन्धे, बहिरे या गंगे होकर दुर्गति प्राप्त करेंगे | 3 और भी कितने ही श्रमणोपासक जिनसे पौपधत्रत या मारणान्तिक संलेखना जैसे कठिन व्रत नहीं पाले जा सकते, वे अपनी प्रवृत्ति के स्थान की मर्यादा घटाने के लिये सामायिक देशावकालिक व्रत धारण करते हैं । इस प्रकार वे मर्यादा के बाहर सब जीवों की हिंसा का त्याग करते हैं और मर्यादा में त्रस जीवों की हिंसा न करने का व्रत लेते हैं । वे मरने के बाद उस मर्यादा में जो भी त्रस जीव होते हैं, उनमें फिर जन्म धारण करते हैं, मर्यादा में के स्थावर जीव होते हैं । उस मर्यादा में के जीव भी ग्रायुष्य पूर्ण होने पर उसी मर्यादा में सरूप जन्म लेते हैं, अथवा मर्यादा में के स्थावर जीव होते हैं अथवा उस मर्यादा के बाहर के बस-स्थावर जीव उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार मर्यादा के बाहर के बल और स्थावर जीव भी जन्म लेते हैं। अथवा उस बस स्थावर I इस प्रकार जहाँ विभिन्न जीव अपने अपने विभिन्न कर्मों के अनुसार विभिन्न गति को ग्राप्त करते रहते हैं, वहां ऐसा कैसे हो सकता है कि सब जीव एक समान ही गति को प्राप्त हो ? और भी, विभिन्न जीव विभिन्न आयुष्य वाले होते हैं इससे वे
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy