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________________ - vyanvvf.) ..... .......vilu...MVNMUVau.ruVMuhhire नालन्दा का एक प्रसंग .. . .... ... . . .. ..... . . ............... . ..." - - विभिन्न समय पर मर कर विभिन्न गति प्राप्त करते हैं। इस कारण ऐसा कभी नहीं हो सकता कि सब जीव : एक साथ ही मर कर एक समान ही गति प्राप्त करें कि जिस कारण किसी को व्रत लेना या हिंसा करना ही न रहे। इस प्रकार उदक के स्वभाव के अनुसार लम्बा उत्तर देकर फिर गौतम स्वामी उसको सलाह देने लगे कि, हे आयुष्मान् उदक ! जो मनुष्य पापकर्म को त्यागने के लिये ज्ञान-दर्शन- चारित्र प्राप्त करके भी किसी दूसरे श्रमण ब्राह्मण की झूठी निंदा करता है, और वह भले ही उनको अपना मित्र मानता हो तो भी वह अपना परलोक विगाड़ता है। . ... इसके बाद पेढालपुत्र उदक गौतम स्वामी को नमस्कार आदि आदर दिये बिना ही अपने स्थान को जाने लगा। इस पर गौतम स्वामी ने उसे फिर कहा, हैं आयुष्यमान् ! किसी भी शिष्ट श्रमण या ब्राह्मण के पास से धर्मयुक्त एक भी आर्य सुवाक्य सुनने या सीखने को मिलने पर अपने को अपनी बुद्धि से विचार करने पर ऐसा लगता है कि आज मुझे जो उत्तम योग-क्षेम के स्थान पर पहुँचाया है, उस मनुष्य को उस श्रमण ब्राह्मण का आदर करना चाहिये, उसका सन्मान करना चाहिये, तथा 'कल्याणकारी मंगलमय देवता के समान उसकी उपासना करना चाहिये। इस पर पेढालपुन उदक ने गौतम स्वाभी से कहा-ऐसे शब्द मैंने पहिले कभी नहीं सुने थे, नहीं जाने थे और किसी ने मुझे नहीं कहे थे, इस कारण मैंने ऐसा व्यवहार नहीं किया। पर है भगवान् ! अब ये शब्द सुनकर मुझे उन पर श्रद्धा, विश्वास और रुचि हो गई है । मैं स्वीकार करता हूं कि आपका कथन यथार्थ है ।
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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