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________________ VA. नालन्दा का एक प्रसंग [१२६ anh a v ..... .rni Nishvhavi - - होकर घरबार त्याग करके प्रत्रया ली है, उनकी हम मरने तक हिंसा नहीं करेंगे। उन्होंने गृहस्थ की हिंसा न करने का नियम नहीं लिया होता है । अब मानों कि कोई श्रमण प्रव्रज्या लेने के बाद चार पाँच या अधिक वर्षों तक घूम-घाम कर. ऊब उठने के बाद फिर गृहस्थ हो जाता है। अब वह मनुष्य उस गृहस्थ बने हुए श्रमण को मार डाले तो उसका श्रमण को न मारने का नियम टूटा नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार जिसने केवल ब्रस की हिंसा का ही त्याग किया हो वह इस जन्म में स्थावर : रूप उत्पन्न जीवों की · हिंसा करे तो नियम का भंग नहीं ही होता । . इसके बाद में फिर उदक ने गौतम स्वामी से दूसरा प्रश्न पूछा-हे आयुष्मान् गौतम ! ऐसा भी कोई समय आ ही सकता है जब सब के सब स जीव स्थावर रूप ही उत्पन्न हों और बस जीवों की, हिंसा न करने की इच्छावाले श्रमणोपसक को ऐसा नियम लेने और हिंसा करने को ही न रहे ? .. . गौतम स्वामी ने उत्तर दिया-नहीं, हमारे मत के अनुसार ऐसा कभी नहीं हो सकता क्योंकि सब जीवों की मति, गति और कृति ऐसी ही एक साथ हो जावें कि वे सव स्थावर रूप ही उत्पन्न हों, ऐसा संभव नहीं है । इसका कारण यह है कि प्रत्येक समय भिन्न भिन्न शक्ति और पुरुपार्थ वाले जीव अपने अपने लिये भिन्न भिन्न गति तैयार करते रहते हैं; जैसे कितने ही श्रमणोपसक प्रव्रज्या लेनेकी शक्ति न होने से पौपध, अणुव्रत आदि नियमों से अपने लिये ‘शुभ ऐसी देवगति अथवा सुन्दर कुलवाली मनुष्यगति तैयार करते हैं और कितने ही बड़ी इच्छा प्रवृत्ति और परिग्रह से युक्त
SR No.010728
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopaldas Jivabhai Patel
PublisherSthanakvasi Jain Conference
Publication Year
Total Pages159
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sutrakritang
File Size6 MB
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