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________________ (८९) नवा पाप कर्मथी सदा निवतीने शुभ धर्मकरणी करपा सदा सावधान रहेवू युक्त छे. (५६) जेमणे आ अमूल्य मनुप्य जन्म पामीने प्रमादन परवश थइ धमे आराध्यो नहि, तेमज छते धने कृपणताथी तेना सदुपयोग कयों नहि, एवा विवक विकळने मोक्षनी प्राप्ति दूरज छे. (५७) आकाश मध्ये पण कदाच पर्वतशिला मंत्रतंत्रना योगे कदाच लाबो काळ लटकी रहे, दैव अनुकूळ होय तो बे हाथना बळे समुद्र पण तराय अने घोळे दहाडे पण कदाच ग्रह योगथी आकागमा स्फुट रीते ताराओ देखाय परंतु हिसाथी कोइनु कदापि कई पण कल्याण संभवतुंज नथी. (५८ ) जेम ज्योतिश्चक रात्री अने दिवस- मंडन छे, तेम अखंड शील सीओ अने यतिओन खरेख भूषण छे. (५९) मायावडे वेश्या, शीलवडे कुल बालिका, न्यायवडे पृथ्वीपती, अने सदाचारवडे यति महात्मा शोभे छे. (६०) ज्या सुधीमा शरीर व्याधिग्रस्त थइ न जाय, ज्या सुधीमां जरा अवस्थाथी देह जर्जरित थइ न जाय, अने ज्या सुधीमा इद्रियोन वळ घटी न जाय, त्या सुधीमा स्वस्वशक्ति अने योग्यता मुजब पवित्र धर्मनु सेवन करवु युक्त छे, सद् उद्यमथी सकळ कार्यनी सिद्धि थाय छ; अने प्रमदाचरणथी सक कार्यने हानि होचे छे. (६१ ) मद्य ( Intoxication) विषय ( Evil propensities) कषाय ( Wrath etc ) निद्रा ( Idleness ) अने किकथाकपोल कथारूप पाच प्रकारना प्रमाद जीवोने दुरत व्यथामा पाडे छे. (६२) जगत्गुरु जिनेश्वर प्रभुना पवित्र वचन- उल्लंघन करी ने स्वच्छद वतन चलावq एज प्रमाद्नु व्यापक लक्षण छे. . (६३ ) एवा प्रमादना जोरथी चौद पूर्वधर समान समर्थ
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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