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________________ ( ९० ) पुरुषो पण सत्य चारित्र धर्मथी चलायमान थइ पतित थइ गया छे. तो बीजा अल्पज्ञ अने ओछ । सामर्थ्य वाळा ओनुं तो कहेवुज शुं ? ( ६४ ) थोडुं ऋण, थोडु व्रण ( चांदु ) थोडो अनि अने थोडा कषायनो पण कदापि विश्वास करवो नहि. केमके ते सर्व थोडामांथी वधीने मोटु भयंकर रूप धारण करे छे. ( ६५ ) ज्या सुधी क्रोधादि चारे कषायोनो सर्वथा क्षय थाय नहिं, थोडो पण कषाय शेष रह्यो त्या सुधी तेनो विश्वास करवो नहिं. थोडा पण अवशिष्ठ रहेला कषायनी उपेक्षा करवायी क्वचित् भारे विषम परीणाम आवे छे, माटे तेमनो सर्वथा क्षय करवा सतत् प्रयत्न करवो युक्त छे. ( ६६ ) ज्ञानी पुरुषो क्रोधादिक चारे कषायने चंडाळचोकडी तरीके ओळखावे छे. अने तेनाथी सर्वथा अळगा रहेवा आग्रह करे छे. ( ६७ ) राग अने द्वेष ए बने क्रोधादिक चारे कषायनुं परिणाम छे, अथवा तो राग अने द्वेषयी उक्त क्रोधादि चारे कषायनी उत्पत्ति अने वृद्धि थाय छे. एम समजीने रागद्वेषनोज अंत करवा उजमाळ थवुं युक्त छे. ते बनेनो अंत थये पूर्वोक्त चारे कषायनो स्वत: अंत थइ जाय छे. ( ६८ ) रागद्वेष ए बने मोहथकी प्रभवे छे, तेथी ते बने मोहनाज पुत्र तरीके ओळखाय छे, रागने केसरी सिंह जेवो बळवान कह्यो छे अने द्वेषने मदोन्मत हाथी जेवो मस्त मान्यो छे. तेथी तेमनो जय करवा ज्ञानी पुरुषो मोटा सामर्थ्यनी जरुर जोवे छे. ( ६९ ) राग अने द्वेष केवळ मोहनाज विकारभूत होवाथी, ज्ञानी पुरुषो मोहनेज मारवानुं निशान ताके छे. मोह सर्व कर्ममा अग्रेसर छे · ( ७० ) मोहनो क्षय थये छते शेष सर्व परिवार पण स्वतः क्षय
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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