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________________ (८७) जरूर छे. प्रमादथी घणा पतित थइने पायमाल थइ गया छे. (४३) जो विषयमोगमां नित्य जतुं मन रोकवामां आव्यु नहिं तो; भस्म चोळपाथी, धूम्रपान करवाथी, वस्त्र त्यागथी, तेमज अनेक बीजां कष्ट सहन करवाथी, के जपमाळा फेरववाथी शुं वळपानुं हतुं ? (४४) अमृत जेवा मधुर वचनथी खळ पुरुषोने जे सन्मार्गमा जोडवा इच्छे छे, ते मघना बींदुथी खारा समुद्रने मीठो करवा पांछे छ; अने निर्मळ जळथी कोयलांने साफ करवा मागे छे, जे बनवू केवळ अशक्य छे. (४५) कुमतिने सर्वथा तिलांजली दइने, सुमतिनो सर्वदा आदर करनार महामति दुर्गतिने दळीने सद्गतिनो भागी थइ शके छे. ___ (४६) कमळना पत्र उपर रहेला जळबिंदु समान जीवितने चंचळ लेखीने, विविध विषय भोगथी विरमीने, मोक्षार्थी जीवे दान शील तप अने भावना रुपी पवित्र धर्म, सेवन करज उचित छे. (४७) सर्व संयोगिक भावोने क्षणविनाशी समजीने, गुरुकृपायी शीघ्र स्वहित साधी लेवा बनतो श्रम करवो विवेकीने उचित छे. (४८) जेमणे दुर्जननी संगति करी तेणे धर्म साधननी आ अपूर्व तक खोइ छे; एम निश्चयथी समजवु. दुर्जन द्विजिव्हा सर्पनी जेवाज झरीला होवाथी सामान पण विक्रिया उपजावे छे. (४९ ) जो परमात्मामां पूर्ण प्रेम जाग्यो नहिं यातो संपूर्ण गुणानुराग जाग्यो नहिं, तो विविध शास्त्र परिश्रम मात्रथी शु वळ्युं ? (५०) मिथ्याडबस्थी जीव परिणामे भारे दुःखी थाय छे. मिथ्या दमामथी जीव उधुं वेतरवा जाय छे, जेमा निश्चे हानिज पामे छे. एवो दभ निश्चे दूर्गतिनुज मूळ छे. माटे सर्व प्रकारे कपटवृत्ति तजीने सरल भावज धारण करवो मोक्षार्थीने युक्त छे. दंभ युक्त सर्व
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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