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________________ आगळ कराशे, पण विकराळ का अचानक आवीन ते बापडानो कोळीयो करी जाय छे. पवित्र धर्मर्नु अराधन करवामां प्रमाद सेवनार खरेखर ठगाइ जाय छे; माटेज कयुं छे के काले कर होय ते आजे कर अने आज कर होय ते अवघडीए कर.'. केमके कालने काळनो भय छे. : (२८ ) रावण जेवा राजपी, हनुमान जेवा वीर अने रामचंद्र जेवा न्यायीनो पण काळ कोळीयो करी गयो तो बीजानुं तो कहेबुज ? आथीज का सर्वभक्षी कहेवाय छे, ए वात सत्य छे. (२९ ) सुकृत या सदाचरण विना मायामय बंधनोथी बंधायेला संसारी जीवोनी मुक्ति-मोक्ष शी रीते थइ शके वारु ? . (३०) आ मनुष्य जन्मरुपी चिंतामणी रत्न पामीने, जे गफलत करे छे, ते तेने गुमावीने पछिळथी पस्तावो करे छे. काम क्रोध, कुबोध, मत्सर, कुबुद्धि अने मोह मायावडे जीवो स्वजन्मने निष्क करी नाखे छे. (३१) आ मनुष्य देहादिक शुभ सामग्रीनो सदुपयोग करपाथी निर्वाण सुख स्वाधीन थइ शके तेम छता, रागाध बनी जीव मोहमायामां मुंझाइ मूढनी जेम कोटी मूल्यवाळु रत्न आपी कागणी खरीदे छे. (३२) भयंकर नादिकनो मोटो डर न होत तो कोई कदापि पापना त्याग करी शकत नहि अने सद्गुणनो मार्ग सेवी शकत नहि. (३३ ) जेणे निर्मल शीळ पाण्यु नथी, शुभ पात्रमा दान दीधुं नथी अने सद्गुरुनु वचन सामळीने आदथु नथी, तेनो दुर्लभ मानव भव अलेखे गयो जाणवो. , (३४) संयोगर्नु सुख क्षणीक छे; देह व्यधिग्रस्त छे अने भयंकर का नजदीक आवतो जाय छे; तोपण चिंत्त पाप कर्मथी विरक्त कम थतुं नथी ? अथवा संसारनी मायाज़ विलक्षण :छे, ..
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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