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________________ (८४) सर्वनी पाछळ पडयो न होत तो विविध प्रकारना विषय सुखथी कोइ कदापि विरक्त थातज नहिं. (२१) जगतनी कल्पित मायामा फसाइ जीवो ममताथी मार मारुं कर्या करे छे, पण मूढताथी समीपवती कोपला कृतांत-काळन देखी शकता नथी. नहिं तो जगतनी मिथ्या मोह मायामां अंजाइ जइ मारुं भारं करीने तेओ केम मरे ? (२२) छती साम्रग्रीनो सदुपयोग करपामा पेदरकार रहे नारने काळ समीप आव्ये छते मनमा खेद थाय छे के हाय ! में स्वाधीनपणे कांइ पण आत्म साधन न कयु, हवे पराधीन पडेलो हुं हुं करी शकुं ? प्रथमथीज सावधानपणे सत् सामग्रीने सफ: करी जाणनारने पाथी खेद करवो पडतोज नथी. ( २३ ) प्रथम प्रभादवडे तप जप व्रत पचखाण नहि करनार कायर माणस पछि थी व्यर्थ मात्र देवनेज दोप दे छे. खरो दोष तो पोतानोज छे के पोते छती सामग्रीए सवेळा त्यो नहिं. (२४ ) वाळ शीघ्र योवन क्यन प्राप्त करतो अने जुवान जरा अवस्थाने प्राप्त थतो अने ते पण काळने वश थयो छतो, १४ नष्ट थयो देखाय छ; एवा प्रत्यक्ष कौतुकवाळा बनाव देख्या वाद बीजा इंद्रजार्नु शु प्रयोजन छे ? आ संसारज अनेक पात्रयुक्त विचित्र नाटकरुपज छे. (२५) कर्मन विचित्रपणुं तो जूवो ? के मोटा राजाधिराज पण दुर्दैव योगे भीख मागतो देखाय छ; अने एक पामर भीखारी जेयो मोटुं साम्राज्य सुख पामे छे. ए पूर्वकृत कर्मनोज महिमा छे. (२६) परलोक जतां प्राणीने पुत्रादिक संतती'तेमज लक्ष्मी विगेरे,कामे आवतां नथी. फक्त पुण्यने पापज तेनी साथे जाय छे. (२७ ) मोहना मदथी मानवी मनमां धारे छे के, धर्म तो
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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