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________________ (७२) जैसाका तसा छोडकर तत्काल चल निकले. चलते हये ये एक गांवसे दूसरे गांव पहुंचे, तब उस गांवके दरवाजे आगे यहाका राजा अपुत्र मर जानसे मंत्राधिवासित हाथीने आकर शेठ पर जलका अभिषेक किया, तथा उसे उठा कर आपनी स्कंधपर बठा लिया. छत्र चामरादिक राजचिन्ह आपहि प्रगट हुये जिससे वह राजाधिराज बन गया. विद्यापति विचारता है अब मुझ क्या करना चाहिये ? इतनेमे ही देववाणी हुई कि जिनराज की प्रतिनाको राज्यासन पर स्थापन कर उसके नामसे आज्ञा मान कर अपने अंगीकार किए हुये परिग्रह परिमाण व्रतको पालन करते हुये राज्य चलानेमें तुझे कुछ भी दोष न लगेगा. फिर उसने राज्य अंगीकार किया परंतु अपनी तरफसे जीवन पर्यत त्यागवृत्ति पालता रहा. __ अंतमें स्वर्गसुख भोगकर वह पांचवें भवमें मोक्ष जायगा. * देना सिर रखनेसे लगते हुए .. " दोष पर महीषका दृष्टांत पर · महापुर नगरमें बड़ा धनाढय व्यापारी ऋषभदत्त नामक शेठ परम श्रावक था. वह पर्वके दिन मंदिर गया था. वहां उस वक्त उसकेपास नगद द्रव्य न था, इससे उसने उधार लेकर प्रभावना की. घर आये वाद अपने गृहकार्य की व्यग्रतासे वह द्रव्य न दिया गया. एक दफा नशीन योगसे उसके घर पर डाका पडा उसमें उसका सब धन लुट गया. उस वक्त वह हाथमें हथियार ले लुटेरोके सामने गया. इससे लुटरोने उसे शस्त्रसे मार डाला. शस्त्राधात से आतध्यानमें मृत्यु पाकर उसी नगरमें एक निर्दय और दरिद्री पखालीके घर (सक्के ५) वह भैसा हुवा. वह प्रतिदिन पानी ढोने वगैरेह का काम करता है. वहे गाम बड़े ऊंचे पर था और गांवके समीप नदी नीचे प्रदेशम थी. अब उसे रात दिन नदी से नीचेसे ऊपर पानी
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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