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________________ (.७३ ) ढोना पडता था, इससे उसे बड़ा दुःख सहन करना पडता. भूख * प्यास सहन करके शक्तिसे उपरात पानी उठाकर ऊंचे चढते हुए वह पखाली उसे निर्दय होकर मारता है, और वह सर्व कष्ट उसे सहन करना पड़ता है. ऐसे करते हुए बहुतसा समय व्यतीत हुवा. एक समय किसी एक नवीन तैयार हुए मंदिरका किल्ला बंधता था, उस कार्यके लिये पानी लाते समय जाते आते मंदिरकी प्रतिमा देखकर उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुवा, अब उसका मालिक उसे बहुत ही मारता पीटता है तथापि वह पूर्व भव याद आनेस उस मंदिरका दरवाजा न छोडकर वहाही खड़ा हो गया. इससे वहा मदिरके पास खडे हुए उस भैसेंको मारते पीटते देख किसी ज्ञानी साधुने उसके पूर्व भवका समाचार सुनाया इससे उसके पुत्र, पौत्रादिकने वहां आकर पखालीको अपने पिताके जीव भैसेको धन देकर छुडाया, और पूर्व भवका जितना कर्ज था उससे हजार गुना देकर उसे कर्ज मुक्त किया. फिर अनशन आराधकर वह स्वर्गमें गया और अनुकमसे. मोक्ष पदको प्राप्त हुआ. इस लिये अपने सिर कर्ज न रखना चाहिए. विलंब करनेसे ऐसी आपत्तिया आ पडती है. - पाप रिद्धि पर दृष्टांत ? वसंतपुर नगरमें क्षत्रिय, विप्र, वणिक, और सुनार ये चार जने मित्र थे. वे कही द्रव्य कमानेके लिये परदेश निकले. मागम रात्रि हो जानेसे वे एक जगह जंगलमें ही सो गये, वहां पर एक वृक्षकी शाखामें लटकता हुवा, उन्हें सुवर्ण पुरुष देखनमें आया. ( यह सुवर्ण पुरुष पापिष्ट पुरुषको पाप रिद्धी बन जाता है और धर्मिष्ट पुरुषको धर्म ऋद्धि हो जाता है) उन चारोमेसे एक जनेने पूछा क्या तू अर्थ है ? सुवर्ण पुरुषने कहा " हा! मै अर्थ हुं. परंतु अनर्थकारी हूं" यह वचन सुनकर दुसरे भय भीत हो गये
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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