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________________ (६२) तरह धर्मकथा प्रसंग समय जरुर उत्तरासंग-वस्त्रको मुंह आगे रखकर बोलना कि जिस्से जयणा सेवनकी मालुम होवै. ___ इस तरह उपर कही गई करणिय करने के वरूत ज्यौं ज्यों अप्रमत्ततासे वर्तन रखा जाय त्यौ त्यो विशेषतासे आराधकपणा समझना. और उसे विरुद्ध वर्तन रस तो विराधकपणा समझ लेना. पूज्य मातुश्रीकी तरह मानने लायक श्री पूज्य तीर्थकर गणधर 'प्रणीत पवित्र अगवाली जयणामाताका अनादर करके वर्तन चलानेवाले कुपुत्रोंकी तरह इन लोकमें और परलोकमें हासी तथा दुःख के पात्र होते है. वास्ते सपूतकी तरह जयणामाताका आराधन करनेमें नहीं चूकना-यही तात्पर्य है. (२) झूठवाडा झूठा अन्न या पानी खाने पीने या छांटनेसे ___ अपने मुग्ध भाइ और भागनायें कितना बहुत अनर्थ सेवन करते है सो ध्यान में रखो ! पूर्व तथा उत्तरके देशोंको छोडकर आजकाल यहां के अज्ञ जीव इन झूठको बाबतमें बहुत अधर्म सेवन करते है उनका नमूना देखो ? सभी कोइ कुटुंबी या ज्ञाति भाइयों के वास्ते पानी पीने के लिये रखे हुवे बरतनामसे पानी निकालने भरनेके लिये एक इलायदा बरतन-लोटा अगर प्याला नहीं रखतें है; मगर 'जिसी बरतनसे आप मुंहको लगाकर पानी पीते है, बस वही झूठे जलयुक्त बरतनसे पुनः उसी जल भरित बरतनकी अंदरसे पानी निकाल कर आप पीते है या दूसरोंको पिलाते हैं जिस्से शास्त्र मर्यादा मुजब उन जल भाजनमें असंख्यात लालिये समूर्छिम जीव , पैदा होते है यानि वो जलभाजन (पानीका बरतन ) क्षुद्र अति सुक्ष्म जीवमय हो जाता है, उन्हीको, मुंह लगाकर झुठा बरतन पानी भरे हुवे बरतनमें डालने वाले अज्ञ पशु जैसे निर्विवेकी __जीव पीते है ऐसा कहना अयोग्य नहीं होगा. झूठा अन्न या
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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