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________________ (६३) पानी अंतर्मुहुर्त उपरात अविवेक या प्रामादसे रख छोड़ने वाला इस तरह असंख्य जीवों की विराधना करने वाला होता है. ऐसा समझकर-हृदयमें ज्ञान और मगजमें भान लाकर परमवसे डरकर जिस प्रकार बै असंख्य जीवोका नाहक-मुफत संहार न होवे उस प्रकार चेतने रहना योग्य है यानि खाने पीनेकी वस्तुमें झूठा पात्र हाथ न डालना और न झूठा बनाकर दुसरेको देना. ___ उसी तरह गत दिनका ठंडा भोजन पदार्थ, धूप दिखाये बिगर चनाया गया आम आदिका आचार, दो हिस्से होने वाले विदल मूग, उडद, चणे, अरहर, मटर वगैरः के साथ केच्चा दहीं खाना अभक्ष्य भक्षणरूप होनसे उन्होंका तद्दन त्याग करना. (वैद्यकीय नियमसेभी ए चीजे तन्दुरस्ती बिगाउन वाली ही है वास्ते छोडनेसे जरूर फायदाही होता है.) छोटे बडे जीमन-ज्ञाति, कुटुंब भोजनके वास्ते बनाई गई रसोइ कि जिसके बनानेके वरूत जयणा न रखनसे बहूतसे जीवों का सत्यानाश निकस जाता है. और झूठा अन्न जल ढोलनेसेमी बहूतही नुकसान होता है यदि सब जगह जयणा पूर्वक वर्तनमें आवै तो किसीकोभी हरकत न पहुंचने पाने, और धर्माराधनका बड़ा लाभ भी सहजहीमें हासिल कर सके पास्ते हे सुज्ञ जन धुंद ! लज्जा और दयावंत हो एक पलभरभी जयाणाको भूल नहीं जाना. (३) उडाउ खर्च-मा वापके मरे बाद अगर लडका लडकीकी शादी के वरूत बहुत जगह फजुल खर्च करने में आता है, और उन वख्तोंमें करने लायक खर्च तर्फ बेदरकारी रखने आती है. दृष्टांतरुप यह कि माता पिताने अंत कालम वैराग्य द्वारा मोह उतारकर तन मन धनसे जिस प्रकार उन्होंको धर्म समाधि होवै-यावत् उन्होंकी या आपकी सद्गति जिस सुकृत करनेसे हो सकै उसी प्रकार वतना
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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