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________________ ( ३६ ) है. उक्त सर्वज्ञ - उपदेश रहस्यको समझकर जो महाभाग, रुचि प्रीतिसे स्वहृदयमें घारेंगे वो सुविवेकी सज्जनकी समीपमें शिवसुख लक्ष्मी स्वेच्छासे आ क्रीडा करेगी. श्री सर्वज्ञ प्रणीत स्याव्दादशैलीको अनुसर के पूर्वाचार्य प्रसादिकृत प्रकरणादि ग्रंथोके आधारसे आत्मार्थी भव्यों के हितार्थ, जो कुच्छ स्वल्प स्वमति अनुसारसे यहां कथन करनेमें आया है, उसमें मतिमंदतादि दोषोसे उत्सूत्र - विरुद्ध भाषण हुवा होवे वो सहृदयसज्जन सुधारकर जिस प्रकारसे जयवंता जैनशासनकी शोभा बढे, जैसे अनादि अविवेक दूर हो जाय, और सद्विवेक जागृत होवे, जैसे दुरंत दुःखदायी स्वच्छंद वर्तन छोडकर संपूर्ण सुखदायी श्री सर्वज्ञ कथित सन्नीतिका सद्भावसे सेवन होवे, जैसे सम्यक् ज्ञान प्रकाशसे व्यवहार शुद्ध होवे जैसे लोकविरुद्ध त्यागसे शुद्ध देव, गुरु और धर्मका अच्छे प्रकारसे आराधन कर, अंतमें अक्षय सुख संप्राप्त होवे तैसे वर्तन रखने की सज्जनोको मेरी अभ्यर्थना है. नाक में दम आ जाने तक भी प्रार्थना भंग नहि करनेकी उत्तम नीतिका अवलंबन करके सज्जन महाशय सत्यका कथन करना नहीं चुकेंगे. उत्तम हंसके समान सज्जन जन गुणमात्र कोही ग्रहण कर औगुण-दोष मात्रका त्याग करके जैसे स्व परकी तत्वसे उन्नति साध सके वैसे ध्यान देके वर्त्तनेको अवश्य विवेक घरेंगे. आशा है कि, परोपकार परायण सज्जन वर्ग सत्य नीति की उड़ी नीव डाल उसपर अति उमदा धर्मकी इमारत बाधकर उसमें कुटुंब सहित नित्य विलास करेंगे, और सम्यग् ज्ञान, दर्शन चारित्रका यथाशक्ति से आराधन कर अंतमें अविनाशी पद पाकर जन्म मरणादि दुःखोका सर्वथा नाश करेंगे. और सर्वज्ञ - सर्वदर्शी होकर लोकालोकको हस्तामलकवत् देखेंगे. यावत परम सिद्धिदायक परमात्मपद प्राप्त कर पूर्णानंद चिद्रूप हो रहेंगे. ( इत्यलम् . )
SR No.010725
Book TitleSadbodh Sangraha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherPorwal and Company
Publication Year1936
Total Pages145
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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